नईदिल्ली : बच्ची से रेप पर फांसी की सजा के प्रावधान से पहले क्या कोई स्टडी की गई
नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप के मामले में फांसी की सजा के प्रावधान किए जाने से पहले कोई रिसर्च किया गया है। दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट में रेप लॉ में 2013 में हुए बदलाव को चुनौती देने वाली एक पुरानी याचिका पेंडिंग है और उसी पर सुनवाई के दौरान सोमवार को हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
बच्ची के साथ रेप के मामले में फांसी की सजा
दिल्ली हाई कोर्ट ने पूछा कि क्या आपने कानून में बदलाव से पहले कोई स्टडी की थी कि रेप के मामले में फांसी की सजा से डर पैदा होगा। हाई कोर्ट ने सवाल किया कि कितने अपराधी हैं जो पीडि़ता को रेप के बाद छोड़ देंगे जबकि रेप और मर्डर में एक जैसी ही सजा होगी। कानूनी जानकारों के मुताबिक यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि मर्डर में पहले से फांसी है और रेप में फांसी का प्रावधान किया गया है ऐसे में पीडि़ता की जान को खतरा हो सकता है।
रेप और मर्डर में एक जैसी ही सजा होगी
आपको बता दें कि अभी दो दिन पहले ही केंद्र सरकार ने 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप और गैंगरेप में फांसी तक की सजा का प्रावधान किया है। कठुआ, उन्नाव, सूरत और अन्य जगहों पर रेप की घटनाएं सामने आने के बाद केंद्र सरकार से कानून को सख्त बनाने की मांग की जा रही थी।
रेप और गैंगरेप में फांसी तक की सजा का प्रावधान किया है
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश दौरे से लौटते ही कैबिनेट की बैठक बुलाई और अध्यादेश लाने पर सहमति बनी। इस अध्यादेश को राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी है। इसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप में फांसी तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
कोर्ट का तर्क
कार्यकारी चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरी शंकर की बेंच ने सरकार से पूछा, क्या आपने कोई स्टडी या वैज्ञानिक तौर पर कोई आकलन कराया कि मौत की सजा से रेप को रोका जा सकता है। क्या आपने सोचा कि पीडि़त को क्या परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं? कितने अपराधी पीडि़तों को जीवित छोड़ेंगे जब रेप और मर्डर के लिए समान दंड होगा?
कैबिनेट का फैसला
क्रिमिनल लाउ (अमेंडमेंट) आर्डिनेंस 2018 के तहत 12 साल से कम उम्र की लडक़ी से रेप पर कम से कम 20 साल से लेकर उम्रकैद या मौत की सजा भी हो सकती है। अगर पीडि़त 16 साल से कम है और 12 साल से बड़ी है तो अध्यादेश के तहत न्यूनतम दंड 10 साल से बढ़ाकर 20 साल कर दिया गया है। अधिकतम सजा के तौर पर दोषी को आजीवन जेल में रहना पड़ सकता है।