एक तस्वीर, एक संकेत — क्या चीन-भारत संबंधों में आ रहा है बड़ा बदलाव?

एक तस्वीर ने भू-राजनीति के समीकरणों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अंतरराष्ट्रीय यात्रा के दौरान उनके साथ नजर आया एक चेहरा अब वैश्विक चर्चाओं का केंद्र बन गया है — और वो हैं चीन के बेहद प्रभावशाली नेता काई ची।
इस मुलाकात की खास बात ये है कि काई ची न सिर्फ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सबसे करीबी माने जाते हैं, बल्कि चीन की सबसे ताकतवर निर्णय लेने वाली संस्था — पॉलिट ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी — के भी सदस्य हैं। सात सदस्यों वाली इस समिति में काई ची पांचवें स्थान पर जरूर हैं, लेकिन उनका प्रभाव चीन के प्रीमियर ली कियांग के बराबर समझा जाता है।
काई ची को चीन की रणनीति का आर्किटेक्ट माना जाता है। वे चीन के वैश्विक प्रचार अभियान (प्रोपेगैंडा) के संचालन में अहम भूमिका निभाते हैं। भारत समेत कई देशों के खिलाफ चीन की “नैरेटिव वॉर” में उनकी भूमिका अहम रही है। लेकिन अब, जब वही काई ची प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करते हैं — और वह भी शी जिनपिंग के कहने पर — तो सवाल उठते हैं:
क्या चीन भारत के साथ एक नई शुरुआत की तैयारी कर रहा है?
सूत्रों की मानें, तो ये मुलाकात सिर्फ औपचारिक नहीं थी। शी जिनपिंग खुद पहले पीएम मोदी से मिले, और फिर अपने सबसे विश्वसनीय रणनीतिकार काई ची को उनसे मिलने भेजा। यह दर्शाता है कि बीजिंग अब दिल्ली के साथ अपने संबंधों में सिर्फ बातचीत नहीं, बल्कि कुछ ठोस बदलावों की ओर बढ़ सकता है।
इतिहास देखें तो काई ची का इतना सामने आना असामान्य है। पॉलिट ब्यूरो के सदस्य आमतौर पर विदेशी दौरों में राष्ट्रपति के साथ नहीं जाते। लेकिन काई ची एक अपवाद रहे हैं — व्लादिमीर पुतिन से लेकर जो बाइडेन तक, जहां शी जिनपिंग गए, वहां काई ची भी गए। यहां तक कि जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने थे, तब अमेरिका चाहता था कि काई ची शपथग्रहण समारोह में शामिल हों — लेकिन ऐसा हो न सका।
कूटनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर काई ची सीधे तौर पर भारत के साथ संवाद कर रहे हैं, तो ये सिर्फ संदेश नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीतिक योजना की झलक है।
हाल के दिनों में चीनी मीडिया का रुख भारत के प्रति नरम होता दिखा है। वहां पीएम मोदी की प्रशंसा शुरू हो गई है — और इसके पीछे भी काई ची की रणनीति हो सकती है।
नया अध्याय?
यह मुलाकात संकेत है कि भारत और चीन, जिनके संबंध पिछले वर्षों में तनावपूर्ण रहे, अब संवाद के नए रास्ते तलाश सकते हैं। काई ची जैसे शख्स का पीएम मोदी से मिलना बताता है कि बीजिंग भारत को अब मात्र एक पड़ोसी नहीं, बल्कि एक संभावित साझेदार के रूप में देखने की कोशिश कर रहा है।
अब देखना यह है कि क्या ये केवल एक प्रतीकात्मक तस्वीर है — या फिर आने वाले समय में यह तस्वीर दक्षिण एशिया की राजनीति का चेहरा बदलने वाली है।