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अबूझमाड़ के जंगलों में गूंजा जश्न, भारत के सबसे खतरनाक नक्सली बसवा राजू का अंत

रायपुर। तीन दिन तक घने जंगलों की खामोशी को चीरती गोलियों की गूंज और हर कदम पर मौत का साया… लेकिन जब धुएं के बादल छंटे, तो धूप के साथ लौटी थी एक बड़ी जीत की चमक। भारत के सबसे वांछित नक्सली बसवा राजू की कहानी अब खत्म हो चुकी है — वहीं, जहां उसने दशकों से खून की स्याही से इतिहास लिखा था। यह कोई आम ऑपरेशन नहीं था — यह था “ऑपरेशन बसवा”।

जश्न की रंगीन तस्वीरें… लेकिन लाशों के बीच

21 मई की सुबह, जब अबूझमाड़ के गहरे जंगलों में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई, तो उसका अंत 27 लाशों के साथ हुआ। लेकिन इन लाशों के बीच, जवानों की आंखों में राहत की नमी और चेहरे पर रंग-गुलाल के साथ जीत का जश्न था।
बसवा राजू — 10 करोड़ की इनामी राशि, 6 राज्यों की पुलिस की नींद उड़ाने वाला चेहरा, और नक्सल नेटवर्क का मास्टरमाइंड… उसी की लाश के सामने डांस करती, गुलाल उड़ाती DRG की टुकड़ियाँ एक तस्वीर बन गईं — आतंक के अंत की तस्वीर।

देश का दुश्मन… जो कभी इंजीनियर था

जिसने कभी बीटेक की डिग्री ली थी, फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलता था, वही बसवा राजू जब नक्सली संगठन से जुड़ा तो उसके नाम 10 हो गए — केशव, गगन्ना, प्रकाश, कमलेश… एक चेहरा, कई पहचान। छत्तीसगढ़ से लेकर झारखंड, ओडिशा से तेलंगाना — हर जंगल उसकी पनाह बन चुका था। लेकिन आख़िरी पनाह अबूझमाड़ ही बनी — जहां उसने खुद को सुरक्षित समझा था, वहीं मौत ने उसे घेर लिया।

जंगल में आतिशबाज़ी, शहर में आरती

इस जीत की गूंज जंगलों तक सीमित नहीं रही। नारायणपुर शहर में फूटे पटाखे, फिज़ा में उड़ता गुलाल और अपने सपूतों को आरती उतारते परिजन — यह था उस संघर्ष का सम्मान, जो सालों से सुरक्षाबलों ने झेला था।

मिलिट्री जीत के साथ मनोवैज्ञानिक भी

इस ऑपरेशन में सिर्फ एक बड़ा नक्सली नहीं मारा गया — उसके साथ 26 और साथी भी ढेर हुए, जिनमें से कई लाखों की इनामी सूची में थे। हथियारों का ज़खीरा मिला — AK-47, इंसास, रॉकेट लॉन्चर, कार्बाइन, और तमाम गोला-बारूद।
यह सिर्फ एनकाउंटर नहीं था, यह एक संदेश था — बस्तर अब चुप नहीं रहेगा, अबूझमाड़ अब छुपने की जगह नहीं है।

बसवा की आखिरी चाल, जो उलटी पड़ गई

मुठभेड़ से एक दिन पहले बसवा राजू अपनी टीम के साथ लोकेशन बदलने की तैयारी कर रहा था। लेकिन चार जिलों की DRG टीमों ने ऐसा घेरा बनाया कि वह भाग नहीं सका। 21 मई को सुबह 11 बजे गोलियों की तड़तड़ाहट शुरू हुई और कुछ ही घंटों में भारत का सबसे बड़ा मोस्ट वांटेड नक्सली ज़मीन पर पड़ा था।

एक युग का अंत? या शुरुआत?

DRG जवानों ने सिर्फ एक दुश्मन को नहीं मारा — उन्होंने एक डर, एक साया, एक मिथक को खत्म किया है। पर क्या यह अंत है या एक नई शुरुआत?

फिलहाल, अबूझमाड़ के जंगलों में सिर्फ पत्तों की सरसराहट नहीं है — वहां गूंज रहा है जश्न, एक सुकून भरी जीत का।

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