छत्तीसगढ़ राज्य कैसे बना? राज्य निर्माण की पूरी कहानी

कभी मध्य भारत का एक कोना कहलाने वाला छत्तीसगढ़, आज एक संपूर्ण पहचान है… लेकिन ये पहचान किसी एक रात में नहीं बनी। इसके पीछे हैं संघर्ष, आंदोलन, संकल्प… और वो धड़कनें जो बरसों से कह रही थीं – अब बहुत हो गया, अब हम खुद का सपना देखेंगे!
कहानी शुरू होती है 1956 से… राज्यों के पुनर्गठन का दौर था। भाषाई आधार पर भारत के राज्य फिर से बनाए जा रहे थे। उस दौर में छत्तीसगढ़ को सीधे मध्यप्रदेश में जोड़ दिया गया।
संस्कृति अलग, बोली अलग, रहन-सहन अलग – मगर प्रशासनिक निर्णयों में इस ‘अलग’ की कोई जगह नहीं थी। छत्तीसगढ़ को ‘पिछड़ा’, ‘वनवासी’, ‘जंगलों वाला इलाका’ कहा गया। राजधानी भोपाल में योजनाएं बनतीं, और बस्तर, सरगुजा जैसे इलाके सिर्फ नजरअंदाज़ होते।
1970 के दशक में पहली बार जोरदार आवाज़ उठी – ठाकुर प्यारेलाल सिंह, पंडित सुंदरलाल शर्मा, और बाद में डॉ. खूबचंद बघेल जैसे समाजसेवकों ने छत्तीसगढ़ी अस्मिता की नींव रख दी थी । इन आंदोलनों में खासकर छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ एकता मंच, और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण समिति जैसे संगठनों ने मोर्चा संभाला। रायपुर से लेकर दिल्ली तक आंदोलन की गूंज पहुंची। लेकिन… दिल्ली चुप थी, भोपाल व्यस्त था।
1980 से 1990 के बीच कई बार छत्तीसगढ़ राज्य के प्रस्ताव संसद में पहुंचे, लेकिन या तो फाइलें दबा दी गईं, या बहस में उलझा दिया गया। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने भी लोकसभा में छत्तीसगढ़ की मांग का समर्थन किया था। मगर उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। दिलचस्प बात ये थी कि खुद मध्यप्रदेश के कई नेता नहीं चाहते थे कि छत्तीसगढ़ अलग हो,क्योंकि ये इलाका कोयले, लोहा, जल-जंगल और खनिजों का धनी था – आर्थिक रूप से ताकतवर।
1998 में केंद्र में NDA सरकार आई – प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी। और यहीं से कहानी ने रफ्तार पकड़ी। 1999 में संसद में छत्तीसगढ़ राज्य पुनर्गठन विधेयक पेश हुआ। और 25 अगस्त 2000 को संसद ने इसे मंज़ूरी दे दी। राष्ट्रपति की मुहर लगी और तय हुआ – 1 नवंबर 2000 से छत्तीसगढ़ भारत का 26वां राज्य बनेगा । इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री की कुशलता ही कहेंगे कि छत्तीसगढ़ को अलग राज्य का दर्जा भी मिला और किसी को गिला शिकवा भी नहीं हुआ ।
रायपुर में जश्न का माहौल था। स्कूलों में मिठाइयां बंटी, गांवों में ढोल बजे, और लोगों की आंखों में था गर्व! अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। रायपुर राजधानी बनी, और छत्तीसगढ़ ने अपना संविधान, अपनी विधानसभा और अपने सपनों की दिशा खुद तय की।
छत्तीसगढ़ राज्य बनना सिर्फ एक भूगोल की रेखा नहीं थी, ये उस जनजातीय, ग्रामीण और मेहनतकश समाज की जीत थी – जिसने दशकों तक शोषण सहा, मगर उम्मीद नहीं छोड़ी।
“ये कहानी हमें याद दिलाती है कि पहचान कोई दे नहीं सकता – उसे कमाना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ ने अपनी पहचान कमाई है – आंदोलन से, बलिदान से, और अपने अधिकार की आवाज से। आज जब आप कहते हैं – ‘जय जोहार’, तो उसमें सिर्फ अभिवादन नहीं – बल्कि आत्मसम्मान की गूंज भी होती है।”