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जब रेगिस्तान से गरज उठा शेर — क़तर ने यूरोप को दिखाया आईना

जिस दिन शेर गरजता है, जंगल के सारे कानून बदल जाते हैं — और यही हुआ जब छोटे से देश क़तर ने यूरोप की “नैतिक सत्ता” को चुनौती दी।
अबकी बार न धमकी थी, न झुकाव — बल्कि एक साफ़ संदेश:
“हम तुम्हारे बनाए नियमों से नहीं, अपने संसाधनों से बात करेंगे।”

सदियों से पश्चिमी देशों का रवैया यही रहा —
कानून हम बनाएंगे, बाकी दुनिया मानेगी।
कभी मानवाधिकार के नाम पर,
कभी पर्यावरण नीति के बहाने,
कभी डाटा सुरक्षा की आड़ में —
पश्चिम खुद को नैतिक शिक्षक और बाकी देशों को छात्र समझता आया है।

लेकिन अब कहानी बदल रही है।
यूरोप ने नया कानून बनाया —
Corporate Sustainability Due Diligence Directive (CSDDD) —
जो कंपनियों को मानवाधिकार और जलवायु लक्ष्यों के नाम पर नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था।
मगर इस बार क़तर ने कह दिया,
अगर ये नियम नहीं बदले गए, तो एलएनजी की सप्लाई बंद —
यानी यूरोप की सर्दी अब क़तर की मर्ज़ी पर।

क़तर के ऊर्जा मंत्री साद बिन शेरिदा अल-काबी का बयान सिर्फ़ एक चेतावनी नहीं,
बल्कि पश्चिमी घमंड को सीधी टक्कर थी।
यूरोप, जो अब भी 40% एलएनजी मिडिल ईस्ट से लेता है,
एक छोटे से देश की “ना” सुनने के बाद हिल गया।

भारत वर्षों से यही कहता आया है —

“हमारी नीतियाँ हम तय करेंगे, हमारे नियम हम बनाएंगे।”
क़तर ने वही रास्ता चुना, जो भारत की स्वतंत्र नीति हमेशा दिखाती रही है।
यह सिर्फ़ एक ऊर्जा विवाद नहीं,
बल्कि दुनिया के शक्ति समीकरण में एक नए दौर की दस्तक है।

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