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ट्रंप का इज़रायल पर बदला सुर: “कभी कांग्रेस की सबसे ताकतवर लॉबी थी, अब असर घटा है”

अमेरिकी राजनीति में कभी एक अटूट माने जाने वाले रिश्ते पर अब सवाल उठने लगे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद ये स्वीकार किया है कि इज़रायल की वह चमक, जो कभी अमेरिकी कांग्रेस में सबसे ज़्यादा दमदार लॉबी मानी जाती थी, अब फीकी पड़ती जा रही है।

“हैरान हूं, इज़रायल की ताकत अब वैसी नहीं रही,” ट्रंप ने डेली कॉलर को दिए ओवल ऑफिस इंटरव्यू में कहा। दो दशक पहले की तुलना करते हुए उन्होंने बताया कि आज अमेरिकी सांसद, डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों, खुलकर इज़रायली नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं — खासकर गाज़ा में जारी सैन्य कार्रवाई पर।

इज़रायल से रिश्तों पर ट्रंप का दावा: “मुझसे ज़्यादा किसी ने नहीं किया”

ट्रंप ने यह भी याद दिलाया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में इज़रायल के लिए कई बड़े फैसले लिए — चाहे ईरान के साथ सख्त रुख हो या येरुशलम को राजधानी के रूप में मान्यता देना। उनके मुताबिक, “इज़रायल ने मुझसे बेहतरीन समर्थन पाया है।”

लेकिन इस समर्थन के बावजूद वह मानते हैं कि हालात अब पहले जैसे नहीं रहे। उन्होंने इज़रायल के खिलाफ बढ़ती आलोचना को एक गंभीर चुनौती बताया, खासकर सोशल मीडिया और युवा मतदाताओं के बीच बदलते रुख को।

पब्लिक ओपिनियन में भूचाल

प्यू रिसर्च और क्विनिपिएक यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों के सर्वे भी ट्रंप की बातों को आधार देते हैं। मार्च में हुए एक प्यू पोल में सामने आया कि 18-29 उम्र के 53% अमेरिकी इज़रायल की नीतियों से असहमति जताते हैं — दो साल पहले यह आंकड़ा 42% था। रिपब्लिकन युवा भी अब पहले जैसे समर्थक नहीं बचे।

क्विनिपिएक सर्वे के अनुसार, 60% अमेरिकी वोटर्स अब इज़रायल को अतिरिक्त सैन्य मदद देने के खिलाफ हैं। और सबसे चौंकाने वाली बात — आधे से ज्यादा प्रतिभागियों का मानना है कि गाज़ा में जो हो रहा है, वह ‘नरसंहार’ के दायरे में आता है।

“जंग तो जीत सकते हैं, लेकिन दिल नहीं”

ट्रंप ने चेताया कि इज़रायल भले ही युद्ध के मैदान में आगे हो, लेकिन पब्लिक रिलेशन की लड़ाई वह हार रहा है। “कुछ लोग आज भी 7 अक्टूबर की त्रासदी को नकारते हैं — ठीक वैसे ही जैसे इतिहास में कुछ लोग नरसंहार से इनकार करते आए हैं।”

गाज़ा में अब तक 63,000 से अधिक मौतें दर्ज की जा चुकी हैं — जिनमें अधिकांश आम नागरिक हैं। यह आंकड़ा सिर्फ सैन्य संघर्ष नहीं, मानवीय त्रासदी की ओर इशारा करता है।

नजरें अब 2024 पर

ट्रंप की यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय आई है जब वह फिर से राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं। ऐसे में इज़रायल पर उनका बदला लहजा सिर्फ एक बयान नहीं — बल्कि यह दर्शाता है कि अमेरिकी राजनीति में इज़रायल की पारंपरिक स्थिति अब बहस के दायरे में आ गई है।

क्या इज़रायल अब भी “अमेरिका का सबसे करीबी मित्र” है? या फिर बदलते दौर में पब्लिक ओपिनियन किसी और दिशा में बढ़ रहा है?

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