ऊषा CRPF की पहली लेडी कोबरा कमांडो है। वह गुरिल्ला टैक्टिक और जंगल वार में माहिर मानी जाती हैं और यही कारण है कि नक्सली और दहशतगर्द उनसे खौफ खाते हैं। देश की महिलाओं ने आसमान से लेकर सरहद तक और घर से लेकर मल्टीनेशनल कंपनीज तक हर जगह परचम लहराया है। ऐसी ही एक बहादुर, निडर और दबंग लेडी अफसर है ऊषा किरण। वह छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर में तैनात है।
‘आप बस हौसला दें, बाकी काम कर लेंगी महिलाएं’
ऊषा को प्रतिष्ठित ‘वोग इंडिया’ मैगजीन ने ‘यंग अचीवर ऑफ द ईयर’ चुना है। महज 25 साल की उम्र में सीआरपीएफ जॉइन करने वाली ऊषा हरियाणा के गुड़गांव यानी गुरुग्राम की रहने वाली हैं ।
ऊषा के पिता और दादा भी सीआरपीएफ में रह चुके हैं। अपने पिता और दादाजी से प्रेरित ऊषा ने सीआरपीएफ की 232 महिला बटालियन में ट्रेनिंग ली है ।
दिलचस्प बात यह है कि ट्रेनिंग खत्म होते ही उन्होंने सीनियर्स से मांग की थी कि उनकी नियुक्ति जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्य या फिर नक्सल प्रभावित इलाकों में की जाए।
ऊषा एथलीट भी रह चुकी हैं
ऊषा किरण CRPF की पहली महिला अफसर हैं, जिन्हें नक्सल प्रभावित बस्तर की दरभा घाटी में तैनाती दी गई थी। वह सीआरपीएफ जॉइन करने से पहले राष्ट्रीय एथलीट रह चुकी हैं। दरभा वही इलाका है, जहां 25 मई 2013 को झीरम घाटी में एक साथ कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं समेत 32 लोगों की नक्सलियों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। बावजूद इसके उषाकिरण ने नक्सली क्षेत्र में अपनी पोस्टिंग को अहमियत दी ।
ऑपरेशन के दौरान वॉशरूम को लेकर क्या बोली उषाकिरण
एक इंटरव्यू के दौरान जब उषाकिरण से पूछा गया कि नक्सली क्षेत्र में जवान को वॉशरूम की दिक्कत आती है तो वह क्या करती हैं । इस पर उषा किरण ने कहा कि महिला होने के नाते इस तरह की दिक्कतों का सामना होने करना पड़ता है, लेकिन जब आप वर्दी को अपनाती है तो आपको कई चीजें ड्यूटी का हिस्सा मानने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए । उन्होंने कहा कि जब आप किसी ऑपरेशन पर निकले हैं और घने जंगल हो तो वहां जगह-जगह सरकार आपको वॉशरूम बना कर नहीं दे सकती । इसलिये महिला होने के बावजूद भी हमें ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिये ।
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