
छत्तीसगढ़ में जब से कांग्रेस की सरकार आई है, तब से स्वर्गीय अजीत जोगी का परिवार आदिवासी नहीं रहा । रिचा जोगी को लेकर भी जो रिपोर्ट सामने आई है उसके मुताबिक रिचा जोगी भी आदिवासी नहीं हैं । सामाजिक प्रास्थिति प्रमाणपत्रों की जांच के लिए बनी उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने लंबी जांच और सुनवाई के के बाद अजीत जोगी की पुत्रवधु ऋचा जोगी का जाति प्रमाणपत्र निरस्त करने के एसडीएम के फैसले को सही ठहरा दिया है।
आदिवासी विकास विभाग के सचिव डीडी सिंह की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने ऋचा जोगी के उस दावे को खारिज कर दिया जिसके मुताबिक उन्होंने अपने पूर्वजों को गोंड जनजाति का बताया था। ऋचा जोगी की ओर से दिए गए भूमि और शैक्षणिक दस्तावेज और उनके पुरखों के गांव के लोगों के बयानों को आधार बनाया है । छानबीन समिति का निष्कर्ष है, ऋचा जोगी अपने पुरखों के गोंड जनजाति का होने का दावा प्रमाणित नहीं कर पाईं।
ऐसे में 27 जुलाई 2020 को मुंगेली से जारी उनका जाति प्रमाणपत्र निरस्त किया जाता है। छानबीन समिति के उप पुलिस अधीक्षक को उनका जाति प्रमाणपत्र जब्त करने को भी अधिकृत किया गया है। उच्च स्तरीय जाति प्रमाणपत्र छानबीन समिति इससे पहले ऋचा जोगी के ससुर और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का भी प्रमाणपत्र खारिज कर चुकी है।
जाति प्रमाणपत्र के समर्थन में ऋचा जोगी ने अपने पुरखों को मुंगेली जिले के पेण्ड्रीडीह गांव का निवासी बताया था। जांच में सामने आया कि उनके पूर्वज वर्णवासी साधू, निवासी विश्रामपुर जिला बलौदा बाजार ने यहां 1940 में जमीन खरीदी थी।
बलौदा बाजार के इंगलिश मिडिल स्कूल में उनके पूर्वज का नाम दर्ज है, लेकिन जाति में क्रिश्चियन लिखा हुआ है। खुद ऋचा जोगी के स्कूली दस्तावेजों में जाति कॉलम में क्रिश्चियन दर्ज है। भूमि क्रय-विक्रय के 12 दस्तावेजों में खुद ऋचा जोगी और उनके पूर्वजों ने खुद को ईसाई बताया है।
छानबीन समिति ने अपने फैसले में ऋचा जोगी की मां रश्मी कांता साधू का भी बयान दर्ज किया है। इस बयान के मुताबिक उनके ससुर के पिता का नाम वर्णवास साधू था, जो चर्च में पाश्टर थे।
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से बनाई गई छानबीन समिति ने तो जोगी परिवार और उनकी बहू को गैर आदिवासी बता दिया है । लेकिन आपको क्या लगता है कि यह जो भी परिवार के साथ साजिश हुई है या फिर वाकई वह आदिवासी नहीं है ।