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रायगढ़ की महिलाएं रच रहीं आत्मनिर्भरता की नई इबारत

रायपुर। कभी रसोई तक सीमित मानी जाने वाली ग्रामीण महिलाएं अब रायगढ़ की धरती पर बदलाव की इबारत लिख रही हैं। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ‘बिहान’ और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के साझा प्रयासों से ये महिलाएं आज जैविक खेती, पशुपालन और सूक्ष्म उद्योगों के जरिए ‘लखपति दीदी’ बनकर उभरी हैं—सिर्फ अपने लिए नहीं, पूरे समाज के लिए प्रेरणा बनते हुए।

आज रायगढ़ जिले की 1 लाख 45 हजार से भी अधिक महिलाएं 13,500 से ज्यादा स्व-सहायता समूहों से जुड़कर आर्थिक रूप से मजबूत हो चुकी हैं। ये समूह सिर्फ बचत और ऋण जैसी परंपरागत गतिविधियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं के सहयोग से ये महिलाएं आजीविका के नए रास्ते तलाश रही हैं।

कृषि मित्र और पशु सखी: बदलाव की अग्रदूत

पुसौर, खरसिया और धरमजयगढ़ जैसे विकासखंडों में महिलाओं को विशेष रूप से “कृषि मित्र” और “पशु सखी” के रूप में तैयार किया गया है। जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों के उपयोग का प्रशिक्षण लेकर ये महिलाएं न केवल अपनी जमीन पर सतत कृषि को बढ़ावा दे रही हैं, बल्कि अपने अनुभव से अन्य किसानों को भी मार्गदर्शन दे रही हैं।

वहीं पशु सखियां—गांवों की अपनी “पशु चिकित्सक दीदी”—पारंपरिक और घरेलू उपचारों से पशुओं की देखभाल कर रही हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन में इज़ाफा हुआ है और पशुपालन एक मजबूत आय का जरिया बन गया है।

28 करोड़ से ज़्यादा की बैंकिंग सहायता: महिलाओं के सपनों को मिला पंख
वित्तीय वर्ष 2025-26 में अब तक जिले के 1,045 स्व-सहायता समूहों को कुल 28 करोड़ 37 लाख रुपये की बैंक क्रेडिट लिंकिंग की स्वीकृति मिल चुकी है। यह पूंजी अब खेती, पशुपालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन और छोटे उद्योगों में निवेश होकर महिलाओं के सपनों को साकार कर रही है।

प्रशासन की पहल, महिलाओं का भविष्य

कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जितेन्द्र यादव के नेतृत्व में महिलाओं को कम से कम तीन आजीविका गतिविधियों से जोड़ने का लक्ष्य तय किया गया है। ‘बिहान’ के साथ-साथ मनरेगा, कृषि, उद्यानिकी, महिला एवं बाल विकास और पीडीएस जैसी योजनाओं को मिलाकर एक सशक्त तंत्र खड़ा किया जा रहा है, जो तकनीकी प्रशिक्षण और मार्गदर्शन सुनिश्चित करता है।

गांव की शक्ति: नेतृत्व में महिलाएं

यह सिर्फ आर्थिक बदलाव नहीं है—यह सामाजिक क्रांति है। रायगढ़ की महिलाएं अब गांवों में नेतृत्व की भूमिका निभा रही हैं। वे न केवल अपने घर की, बल्कि अपने समुदाय की भी ताकत बन चुकी हैं। जैविक खेती और पशुपालन जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में आधुनिक सोच और तकनीक का समावेश कर वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे रही हैं।

रायगढ़ की ये ‘लखपति दीदियां’ इस बात की मिसाल हैं कि जब अवसर, प्रशिक्षण और समर्थन एक साथ मिलते हैं, तो गांव की महिलाएं भी न सिर्फ अपनी दुनिया बदल सकती हैं, बल्कि पूरे समाज को नया रास्ता दिखा सकती हैं।

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