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छत्तीसगढ़ में NHM कर्मियों का हक की जंग, तीजा पर भी हड़ताल से पीछे नहीं

रायपुर। छत्तीसगढ़ में सरकारी वादों और जमीनी हकीकत के बीच तकरार तेज हो चुकी है। 18 अगस्त से NHM (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) के संविदा कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। करीब 16 हजार कर्मी, जिनकी बदौलत प्रदेश के स्वास्थ्य केंद्रों की सांसें चलती थीं, अब खुद न्याय के लिए सड़कों पर हैं।

टीकाकरण से लेकर महिला और बाल स्वास्थ्य, ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं, मातृ और शिशु देखभाल—इन सभी सेवाओं पर ब्रेक लग चुका है।

लेकिन ये सिर्फ हड़ताल नहीं है, ये एक आक्रोश है, एक पीड़ा है, जिसे कर्मियों ने अलग-अलग तरीकों से जाहिर किया है—कभी खून से चिट्ठी लिखकर, तो कभी तीजा जैसे पर्व छोड़कर धरने में बैठकर।

क्या हैं कर्मचारियों की मांगें?

संविदा कर्मी 10 सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। इनमें प्रमुख हैं:

संविलियन और स्थायीकरण

पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना

27% लंबित वेतन वृद्धि

ग्रेड पे निर्धारण

मिनिमम 10 लाख का कैशलेस मेडिकल इंश्योरेंस

CR सिस्टम में पारदर्शिता

रेगुलर भर्ती में आरक्षण

अनुकंपा नियुक्ति

ट्रांसफर पॉलिसी

मेडिकल और अन्य अवकाश की सुविधा

सरकार क्या कह रही है?

स्वास्थ्य मंत्री का दावा है कि 10 में से 5 मांगों पर सरकार सहमत है, जिनमें ट्रांसपेरेंसी, मेडिकल लीव, ट्रांसफर पॉलिसी (कमेटी गठन), इंश्योरेंस और 5% वेतन वृद्धि शामिल हैं।
लेकिन कर्मचारी साफ कह चुके हैं—”अब सिर्फ आश्वासन नहीं, लिखित में जवाब चाहिए।”

चुनावी वादे और जमीनी सच्चाई

कर्मियों का आरोप है कि चुनाव से पहले ‘मोदी की गारंटी’ में 100 दिनों में नियमित करने का वादा किया गया था। 20 महीने, 160 ज्ञापन और अनगिनत चिट्ठियों के बाद भी, नतीजा वही ढाक के तीन पात।

आंदोलन का बढ़ता दायरा

तीन चरणों में चल रहा यह आंदोलन अब संभागीय स्तर से राज्य स्तरीय हड़ताल की ओर बढ़ रहा है।
तूता (रायपुर) में गरियाबंद, बलौदाबाजार और रायपुर के कर्मचारी पहले ही डेरा डाल चुके हैं।
अब अगले चरण में सभी 16 हजार कर्मचारी यहीं जुटेंगे।

‘नियमितिकरण’ नाम की मेंहदी

NHM कर्मचारी संघ की संगीता मिश्रा ने बताया,

“तीजा जैसे दिन में जब बाकी महिलाएं पति का नाम मेहंदी में लिख रही हैं, हमने ‘नियमितिकरण’ लिखवाया है। क्या कोई इससे ज्यादा मजबूर हो सकता है?”

ये सिर्फ आंदोलन नहीं, उस संवेदनशील वर्ग की आवाज है, जो तमाम कठिनाइयों के बावजूद प्रदेश की स्वास्थ्य रीढ़ को मजबूत बनाए रखता है।

अब सरकार के सामने सवाल ये है:

क्या ये आंदोलन केवल एक और प्रदर्शन बनकर रह जाएगा?
या वादों को हकीकत में बदलने की शुरुआत होगी?

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