ट्रंप का रूस पर बड़ा वार!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध में रूस को आर्थिक सहारा देने के आरोप में दो दिग्गज रूसी तेल कंपनियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं।
यह कदम ट्रंप प्रशासन की अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है — और पहली बार अमेरिका ने रूस पर सीधा आर्थिक दबाव बनाया है।
जानकारों का मानना है कि ट्रंप तेल को कूटनीतिक हथियार बनाकर यूक्रेन में शांति की डील कराने की कोशिश कर सकते हैं।
पोलिश पत्रकार एडम मिचनिक के शब्दों में —
“इतिहास ने कई बार कम्युनिस्टों को समझदारी और समझौते पर मजबूर किया है।”
तेल की कीमतें इतिहास में हमेशा सत्ता समीकरण बदलती रही हैं —
1970-80 के दशकों में तेल के उतार-चढ़ाव ने सोवियत अर्थव्यवस्था को थामे रखा,
तो वहीं अमेरिका और यूरोप महंगाई, मंदी और कर्ज़ से जूझते रहे।
सोवियत संघ ने इसी दौर में तेल से डॉलर कमाए,
अफ्रीका-एशिया में प्रभाव बढ़ाया,
और दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बनकर उभरा।
लेकिन 1980 के दशक में तेल की गिरती कीमतों ने सोवियत साम्राज्य की जड़ें हिला दीं।
महंगे सपनों की जगह आई उधारी की हकीकत —
जैसा इतिहासकार टोनी जूड ने कहा —
“सोवियत ब्लॉक सिर्फ़ उधार के पैसों पर नहीं, उधार के वक़्त पर जी रहा था।”
अब इतिहास जैसे खुद को दोहराने की तैयारी में है —
तेल फिर एक बार वैश्विक राजनीति का सबसे ताकतवर हथियार बन चुका है।




