काला हीरा मखाना बना किसानों की किस्मत बदलने वाला सुपरफूड, महिलाओं को भी मिला आत्मनिर्भरता का नया रास्ता

रायपुर। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में अब खेतों से निकलकर तालाबों में उग रहा है “काला हीरा” — मखाना। यह न सिर्फ किसानों के लिए एक आर्थिक क्रांति का संदेश लेकर आया है, बल्कि महिला स्व-सहायता समूहों को भी नई ऊर्जा और आजीविका का संबल दे रहा है।
जिला प्रशासन की पहल से मखाना अब केवल बिहार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि छत्तीसगढ़ में भी यह तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। धान की तुलना में अधिक लाभ देने वाली इस फसल को लेकर किसानों और महिलाओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है।
पायलट प्रोजेक्ट से शुरू हुई उम्मीद की खेती
कुरूद विकासखंड के राखी, दरगहन और सरसोंपुरी गांवों को मखाना उत्पादन के पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चुना गया। राखी गांव में करीब 5 हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की फसल अब हार्वेस्टिंग की तैयारी में है। खास बात यह है कि इसकी कटाई-छंटाई प्रशिक्षित मजदूरों द्वारा की जा रही है, जिससे गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सुनिश्चित हो रहा है।
महिला समूहों ने थामा नेतृत्व
ग्राम देमार की शैलपुत्री और नई किरण महिला समूहों ने मखाना खेती व प्रसंस्करण का प्रशिक्षण लेकर इस नई राह को अपनाया है। यह पहल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ पूरे परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भी सशक्त बना रही है।
स्वास्थ्य का भी खजाना है मखाना
मखाने में विटामिन, आयरन, कैल्शियम, मैग्निशियम, जिंक और फाइबर जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। यह न केवल डायबिटीज और हृदय रोगियों के लिए लाभकारी है, बल्कि हड्डियों की मजबूती, तनाव मुक्ति और बेहतर नींद के लिए भी जाना जाता है।
लाभ दोगुना, मेहनत व जल उपयोग कम
जहाँ धान की खेती से औसतन ₹32,698 का शुद्ध लाभ होता है, वहीं मखाना किसानों को लगभग ₹64,000 तक की आय दिला रहा है — और वह भी सिर्फ 2 से 3 फीट पानी वाले तालाबों में! यही कारण है कि जिला प्रशासन अब रबी सीजन में 200 एकड़ क्षेत्र में इसका विस्तार करने जा रहा है।
तकनीकी सहयोग से बदल रही है तस्वीर
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर और कृषि विभाग के विशेषज्ञ लगातार किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन दे रहे हैं। इसका सीधा असर खेती की गुणवत्ता और किसानों के आत्मविश्वास पर दिख रहा है।



