रायपुर
‘ज्योतिनंद दुबे को टिकट के विरोध में मैं प्रचार करुंगा, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उन्होंने मेरे खिलाफ कांग्रेस के पक्ष में प्रचार किया था।”
यह खुल्लम-खुल्ला चुनौती पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में संसदीय सचिव व कटघोरा से प्रत्याशी रहे लखनलाल देवांगन ने दी है। भाजपा में टिकट वितरण के बाद के असंतोष की यह एक बानगी है। पार्टी की इसी अंदस्र्नी राजनीति असंतोष और बगावत ने करीब चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा का बेड़ागर्क किया था। अब लोकसभा चुनाव में भी असंतोष उभरने लगा है। पार्टी इसे पानी का बुलबुला बता रही है। प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कह रहे हैं कि सभी अपने हैं मना लेंगे।
पार्टी में बागवती सुर
भाजपा की पूर्व विधायक सुमित्रा मारकोले ने पार्टी से बगावत करते हुए कांकेर सीट से नामांकन फार्म खरीद लिया है। पार्टी ने वहां से मोहन मंडावी को प्रत्याशी बनाया है। मारकोले का कहना है कि पार्टी ने आउटसोर्सिंग के जरिए प्रत्याशी लाया है, इस वजह से मैंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। मारकोले को मनाने की कोशिश पार्टी की तरफ से जारी है, लेकिन अभी वे अड़ी हुई हैं।
पार्टी से बगावत की वजह से लंबे समय तक निलंबित रहे जशपुर के आदिवासी नेता और भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री गणेशराम भगत को टिकट नहीं मिलने से कार्यकर्ता नाराज हैं। शनिवार को कार्यकर्ताओं ने भगत के निवास पर एकत्र को हर शक्ति प्रदर्शन की कोशिश की। हालांकि इस दौरान भगत ने उन्हें संयम बरतने की सलाह दी लेकिन इस दौरान इस बात के भी संकेत मिले की अलग पार्टी बनाने पर विचार किया जा सकता है।
जांजगीर में सांसद पुत्र ने दिखाई नाराजगी
जांजगीर सांसद कमला देवी पाटले के इंजीनियर पुत्र प्रदीप पाटले ने टिकट कटने का गुस्सा सोशल मीडिया में जाहिर किया। प्रदीप ने बाहरी प्रत्याशी का मामला उठाते हुए पार्टी आलाकमान पर तंज कसा, लिखा कि विधानसभा में हार का ठीकरा सभी 10 सांसदों पर फूटा है, लेकिन जिनपर चुनाव की जिम्मेदारी थी, उन्हें छोड़ दिया गया।
कार्यकर्ताओं के बहाने दिखा रहे असंतोष
ऐसा नहीं है कि टिकट कटने का सभी सांसद खुलकर विरोध कर रहे हैं। ज्यादातर सांसद कार्यकर्ताओं के बहाने अपनी नाराजगी संगठन के सामने जाहिर कर रहे हैं। बस्तर से लेकर सरगुजा तक ज्यादातर क्षेत्रों में मौजूदा सांसदों के समर्थक नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।
विधानसभा हार की वजह से कटा सांसदों का टिकट
15 वर्ष तक राज्य की सत्ता में रही भाजपा विधानसभा चुनाव में 15 सीट पर सिमट गई। पार्टी सूत्रों के अनुसार इस करारी हार की वजह से ही पार्टी ने छत्तीसगढ़ में किसी भी सिटिंग एमपी को टिकट नहीं देने का फैसला किया। पार्टी ने इस बार किसी भी मौजूदा सांसद, विधायक या हालिया चुनाव हारे नेता को टिकट नहीं दिया है।
यही नाराजगी विधानसभा में चुनाव में पड़ी थी भारी
नवंबर- दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भी टिकट वितरण के बाद पार्टी में शुरुआत में जमकर बगावत हुई। हालांकि पार्टी नेताओं ने सभी को मनाने का दावा किया, लेकिन लगभग हर सीट पर पार्टी को भितरघात का सामना करना पड़ा। यही वजह है कि पार्टी के ज्यादातर कद्दावर नेता हार गए।