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नईदिल्ली :अयोध्या केस भी है सीजेआई से विपक्ष की नाराजगी की एक वजह

नई दिल्ली  : चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस समेत 7 दलों की ओर से महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने के पीछे भले ही जज बीएच लोया केस को वजह माना जा रहा हो। लेकिन, यह एक मौजूदा कड़ी भर है, असल में इसकी वजह अयोध्या का मामला भी है। 2010 से ही शीर्ष अदालत में लंबित पड़े राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के मसले को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई शुरू की है। यही नहीं इसकी प्रतिदिन सुनवाई को लेकर भी इस बेंच ने फैसला लिया है। माना जा रहा है कि राम मंदिर के केस की प्राथमिकता से सुनवाई करना भी कांग्रेस की ओर से महाभियोग प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की एक वजह है।

यह एक मौजूदा कड़ी भर है

यह मसला तब और गंभीर हो गया, जब जनवरी के महीने में चीफ जस्टिस के खिलाफ 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और आरोप लगाया कि वे सभी महत्वपूर्ण मामले अपने पास ही रखते हैं। यही नहीं जजों ने आरोप लगाया कि रोस्टर बनाने के अधिकार का बेजा इस्तेमाल करते हुए वह जज लोया केस जैसे महत्वपूर्ण मामलों को अपनी पसंद की बेंचों को सौंप रहे हैं। इसके बाद यह विवाद तब और गहरा गया, जब सीजेआई के नेतृत्व वाली बेंच ने अयोध्या मामले की सुनवाई शुरू कर दी।

4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और आरोप लगाया

बता दें कि मिश्रा से पहले चीफ जस्टिस रहे जेएस खेहर ने खुद को अयोध्या केस की सुनवाई से अलग करते हुए कहा था कि यह मसला आपसी सहमति से सुलझना चाहिए। बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने याचिका दायर कर मामले को आपसी सहमति से सुलझाने की बात रखी थी, लेकिन जब जस्टिस खेहर को महसूस हुआ कि स्वामी इस मामले में पक्षकार नहीं हैं तो उन्होंने यह ऑफर ठुकरा दिया था।

आपसी सहमति से सुलझाने की बात रखी थी

गौरतलब है कि अयोध्या मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित भूमि का दो तिहाई हिस्सा हिंदुओं को और मुस्लिमों को एक तिहाई हिस्सा देने का फैसला सुनाया था। हालांकि यह फैसला किसी पक्ष को मंजूर नहीं था और पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी।

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