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छत्तीसगढ़ बिना सुरेंद्र दुबे के महसूस नहीं हो रहा — अंतिम यात्रा में पहुंचे डॉ. कुमार विश्वास की नम आंखों से श्रद्धांजलि

रायपुर। पद्मश्री हास्य कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे की अंतिम यात्रा में देशभर के साहित्यप्रेमियों और रंगमंच के दिग्गजों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी। इस मौके पर वरिष्ठ कवि और वक्ता डॉ. कुमार विश्वास रायपुर पहुंचे और भावुक श्रद्धांजलि देते हुए कहा – “हम अभी भी छत्तीसगढ़ को सुरेंद्र दुबे के बिना महसूस नहीं कर पा रहे।”
उन्होंने कहा, “देश का कोई भी बड़ा कवि मंच पर हो, छत्तीसगढ़ में सुरेंद्र दुबे से ज्यादा तालियां किसी को नहीं मिलती थीं।”

35 साल पुरानी मित्रता

कुमार विश्वास ने सुरेंद्र दुबे से अपने 1991 में हुए प्रथम परिचय को याद करते हुए कहा –“मैंने उन्हें करीब 35 साल तक मंचों पर देखा। कैसे बेमेतरा जैसे छोटे कस्बे से निकलकर उन्होंने दुर्ग, रायपुर होते हुए देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाई। वो न सिर्फ कवि थे, बल्कि छत्तीसगढ़ की आत्मा का प्रतिनिधित्व करते थे।”

राजनीति पर व्यंग्य – बिना डर, बिना झिझक

कुमार विश्वास ने सुरेंद्र दुबे के बेबाक स्वभाव की सराहना करते हुए कहा,“वो चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, मंच से कभी भी सत्य कहने में नहीं झिझके। जिस विचारधारा से वे बाद में जुड़े, उनके मंचों पर भी उन्होंने बिना लाग-लपेट के अपनी बात कही। यह न सिर्फ उनकी ईमानदारी दिखाता है, बल्कि उन राजनेताओं की भी परिपक्वता जो उन्हें सुनते थे।”उन्होंने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने भी सुरेंद्र दुबे ने कई बार राजनीतिक टिप्पणियां कीं, लेकिन उन्होंने कभी बुरा नहीं माना।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी ‘छत्तीसगढ़’ को रखा सबसे आगे

कुमार विश्वास ने याद किया कि अमेरिका, दुबई, शारजाह और लंदन जैसे मंचों पर जब-जब वे सुरेंद्र दुबे के साथ रहे, “वो जब भी स्टेज पर आते थे, आधे से ज़्यादा वक्त छत्तीसगढ़ की भाषा, खानपान और संस्कृति की बात करते थे। भले ही वहां सिर्फ 10-15 छत्तीसगढ़ के लोग होते, लेकिन पूरा हॉल हंसते-हंसते उस मिट्टी से जुड़ जाता। Fourth Eye News की ओर से डॉ. सुरेंद्र दुबे को विनम्र श्रद्धांजलि। आप शब्दों से गए हैं, पर हर शब्द में बसे रहेंगे।

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