
रायपुर। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने सोमवार को एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्र सरकार की विदेश नीति, कूटनीतिक रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए। बघेल ने कहा कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देश की सेना ने अदम्य साहस दिखाया और यह पूरे राष्ट्र के लिए गर्व का विषय है। लेकिन इसके बाद जिस प्रकार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने युद्धविराम की घोषणा की, वह देश के सामने कई सवाल खड़े करता है।
भूपेश बघेल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने हमेशा संकट की घड़ी में राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी है, चाहे वह 1965 का युद्ध हो, 1971 का युद्ध या कारगिल की लड़ाई। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जब पूरा देश सेना के साथ खड़ा था, तब भाजपा नेता ट्विटर पर यूपीए-एनडीए की तुलना कर रहे थे और सेना के पराक्रम को अपनी राजनीतिक उपलब्धि की तरह पेश कर रहे थे।
बघेल ने स्पष्ट कहा, “आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में हमें राष्ट्रवाद चाहिए, न कि राजनीतिक बयानबाज़ी। कांग्रेस ने ‘जय हिंद यात्रा’ निकाली ताकि सेना का मनोबल बढ़े और जनता एकजुट हो। हमने हर स्तर पर सरकार का समर्थन किया, लेकिन अब पारदर्शिता की ज़रूरत है।”
उन्होंने मांग की कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाकर जनता को यह स्पष्ट करे कि युद्धविराम की शर्तें क्या थीं। क्या अमेरिका के दबाव में आकर भारत ने अपनी दशकों पुरानी रणनीति बदल दी है? क्या भारत ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार कर ली है? उन्होंने शिमला समझौते का हवाला देते हुए कहा कि उसमें द्विपक्षीय वार्ता की शर्तें तय थीं, लेकिन अब यह सिद्धांत कमजोर होता नजर आ रहा है।
भूपेश बघेल ने यह भी पूछा कि जो आतंकी 26 लोगों की जान लेकर गए, क्या वे पकड़े गए या मारे गए? जब सरकार ने चूक स्वीकार की है तो फिर जिम्मेदारी तय क्यों नहीं हो रही? क्या गृहमंत्री इस्तीफा देंगे? उन्होंने कहा, “यदि इस चूक पर कोई जवाबदेही नहीं होगी, तो आने वाले समय में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होना तय है।”
प्रेस वार्ता में पीओके को लेकर भी सवाल उठे। इस पर बघेल ने 1994 में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा, “देश का मूड साफ था – पीओके को भारत में मिलाया जाए। लेकिन अब युद्धविराम के पीछे की शर्तें देश के लिए शर्मनाक प्रतीत हो रही हैं।”
उन्होंने दो टूक कहा कि सरकार को जवाब देना होगा – कि 26 लोगों की शहादत के बाद जो कदम उठाए गए, वे निर्णायक थे या कूटनीतिक असफलता से प्रभावित? और क्या यह युद्ध सिर्फ कश्मीर या आतंकवाद के खिलाफ था, या अब इसमें तीसरे पक्ष की एंट्री हो चुकी है?
अंत में भूपेश बघेल ने फिर दोहराया – कांग्रेस सरकार के हर ठोस कदम के साथ है, लेकिन अब देश को जवाब चाहिए, न कि चुप्पी।