इनसाइड स्टोरी: नक्सली चैतू दादा भाग गया पर 25 लाख के ईनामी बुधरा समेत 18 ढेर

इनसाइड स्टोरी : जंगलों के भीतर जो संघर्ष चलता है, वह उन पंक्तियों से कहीं ज्यादा जटिल और खतरनाक है, जिन्हें हम अख़बारों और टीवी चैनलों पर पढ़ते-सुनते हैं। आज फोर्थ आई न्यूज आपको 29 मार्च 2025 को हुए उस एनकाउंटर की इनसाइड स्टोरी बताने जा रहा है, जिसमें 25 लाख के ईनामी नक्लसी सहित 18 नक्सली ढेर हो गए । तो चलिए फिर चलते हैं,
10 किलोमीटर पैदल, जंगल की ख़ामोशी और 500 जवानों की घेराबंदी
सुकमा और दंतेवाड़ा के घने जंगलों में शनिवार को जो हुआ, वह शायद नक्सल विरोधी अभियान का एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है । ये मुठभेड़ यूं ही नहीं हो गई। हफ्तों की रणनीति, खुफिया इनपुट और एक दमदार योजना के बाद ये ऑपरेशन अंजाम तक पहुंचा। जवानों के लिए ये किसी रणभूमि से कम नहीं था। रात के अंधेरे में 10 किलोमीटर पैदल चलते हुए, सांस रोककर हर झाड़ी, हर पेड़ के पीछे दुश्मन की मौजूदगी का एहसास। सुबह साढे छह बजे जब सुरक्षाबल नक्सल कैंप के पास पहुंचे, तो सब कुछ थम-सा गया। जंगल की ख़ामोशी कुछ और इशारा कर रही थी। और फिर पहली गोली चली।
महिला नक्सलियों का फ्रंटलाइन मोर्चा और गुरिल्ला हमला
इस मुठभेड़ की एक खास बात थी, वो थी महिला नक्सलियों की मौजूदगी। मोर्चे के सबसे आगे वही थीं। उन्होंने न केवल पहली फायरिंग की, बल्कि सुरक्षा बलों को कुछ देर के लिए रोक भी दिया। लेकिन जवानों की रणनीति इस बार कुछ अलग थी। फोर्स ने तीन तरफ़ से घेरा डाल दिया था। जंगल के भीतर एक-एक पेड़, एक-एक पत्थर उनका साथी बन गया। नक्सली समझ चुके थे कि इस बार वे बुरी तरह फंस चुके हैं।
भागने का कोई रास्ता नहीं, फिर भी चैतू दादा बच निकला!
दरभा डिवीजन की नक्सली टीम इलाके में सक्रिय थी। मुखबिर से पता चला था कि वे IED लगाने की तैयारी में थे। यूएवी से उनकी हलचल का पता चला, तो जवानों ने अपनी रणनीति बदल दी। फोर्स ने पहाड़ियों को घेर लिया। पहली गोलीबारी के बाद, नक्सली जान बचाने के लिए नेलगुड़ा की पहाड़ियों की तरफ़ भागने लगे। लेकिन इस बार उनके पास भागने का रास्ता नहीं था।
हालांकि, एक नाम बच निकला, और वो था चैतू दादा उर्फ़ लैंगू । ये वही चैतू दादा है, जो नक्सलियों की रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाता है । फोर्स के कुछ जवानों ने उसे सुरक्षा घेरे में भागते हुए देखा, लेकिन घना जंगल उसकी ढाल बन गया। लेकिन फिर भी इस ऑपरेशन में 18 नक्सली मारे गए, जिनमें 25 लाख का इनामी जगदीश उर्फ़ बुधरा भी शामिल था। यह वही नाम है, जो 2013 के झीरम घाटी हत्याकांड में शामिल था। वहीं, इस मुठभेड़ में डीआरजी के तीन और सीआरपीएफ का एक जवान घायल हुआ, लेकिन वे सभी खतरे से बाहर हैं।
सुरक्षाबलों का अदम्य साहस और रणनीति की जीत
ये सिर्फ़ एक मुठभेड़ नहीं थी, बल्कि यह सुरक्षाबलों की हिम्मत और शीर्ष अधिकारियों की सोची-समझी रणनीति का नतीजा था। डीआरजी, सीआरपीएफ और एसटीएफ की संयुक्त ताकत के बिना यह संभव नहीं हो सकता था। आईजी सुंदरराज पी और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों ने जमीनी इनपुट के आधार पर एक बहुपक्षीय रणनीति तैयार की। हर मूवमेंट पर निगरानी रखी गई, ड्रोन से इंटेलिजेंस जुटाया गया, और सबसे अहम—एक ऐसा एंबुश तैयार किया गया, जिससे नक्सली चारों तरफ़ से घिर गए। सुरक्षाबलों के जवानों ने न केवल इस कठिन ऑपरेशन को अंजाम दिया, बल्कि घायल साथियों को भी सुरक्षित निकाला । ये जज़्बा ही है, जो बार-बार साबित करता है कि ये लड़ाई सिर्फ़ बंदूकों की नहीं, बल्कि धैर्य और रणनीति की भी है।