बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का ‘मैजिक’ अब मैट हो गया?

बिहार की राजनीति में कभी जिस नाम का डंका बजता था, आज वही नाम चर्चाओं से ग़ायब होता जा रहा है। सवाल उठ रहा है – क्या नीतीश कुमार का जादू अब वाकई खत्म हो रहा है?
इंडिया टुडे-सीवोटर के लेटेस्ट Mood of the Nation सर्वे ने इस सवाल को और गहरा कर दिया है। देशभर के मुख्यमंत्रियों के प्रदर्शन पर जनता की राय ली गई, लेकिन नीतीश कुमार टॉप परफॉर्मिंग सीएम की लिस्ट में कहीं भी नज़र नहीं आए। न पहला, न दूसरा, न तीसरा… टॉप 10 में भी नहीं।
राजनीति के बुज़ुर्ग कद्दावर, पर अब जनमत की पकड़ ढीली
तीन दशक तक बिहार की राजनीति को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले नीतीश कुमार के लिए ये संकेत मामूली नहीं हैं। गठबंधनों का ताना-बाना बुनते-बिगाड़ते अब वो खुद उस जाल में उलझते दिख रहे हैं, जो कभी उन्होंने दूसरों के लिए बुना था।
असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने सर्वे में टॉप किया, छत्तीसगढ़ के विष्णु देव साय और झारखंड के हेमंत सोरेन भी टॉप 3 में रहे। लेकिन बिहार का जिक्र? नामौजूद। ये चुप्पी बहुत कुछ कहती है।
बदलते समीकरण, डगमग होती लोकप्रियता
2025 विधानसभा चुनाव से पहले जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वो NDA खेमे के लिए चेतावनी हैं। सर्वे के मुताबिक मुख्यमंत्री पद के लिए जनता की पहली पसंद तेजस्वी यादव (30%) हैं। नीतीश कुमार को सिर्फ 23% समर्थन मिला — यानी अब जनता बदलाव चाहती है, स्थायित्व नहीं।
प्रशांत किशोर (PK) भी 14% के साथ चर्चा में हैं, वहीं चिराग पासवान और सम्राट चौधरी दोनों 9% के साथ दौड़ में हैं। 10% लोग तो साफ कह रहे हैं – “महागठबंधन से कोई नया चेहरा चाहिए!”
क्या ‘सुशासन बाबू’ की छवि धूमिल हो चुकी है?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नीतीश कुमार की गिरती लोकप्रियता के पीछे कई वजहें हैं:
गठबंधन की गोलबाज़ी: कभी BJP, कभी RJD, फिर वापस BJP… जनता कन्फ़्यूज है कि असली नीतीश कुमार की विचारधारा क्या है?
नेतृत्व की थकान: उम्र और ऊर्जा दोनों अब पहले जैसे नहीं रहे। फैसले लेने की रफ्तार और सख्ती में वो धार नहीं दिखती।
तेजस्वी का उभार: युवा चेहरा, सधी हुई रणनीति और बढ़ता जनाधार… नीतीश के लिए सीधी चुनौती।
नीतियों से मोहभंग: विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जनता में नाराज़गी बढ़ी है।
आख़िरी पड़ाव या फिर नई चाल?
राजनीति में कुछ भी आख़िरी नहीं होता। लेकिन इतना तय है कि नीतीश कुमार अब क्रॉसरोड्स पर खड़े हैं — या तो वो खुद को नए सिरे से स्थापित करें, या फिर इतिहास में एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाएं जो अपनी ही बनाई राजनीति के जाल में फँस गया।
2025 बिहार चुनाव नीतीश कुमार के लिए सिर्फ एक और चुनाव नहीं, बल्कि उनके राजनीतिक करियर की अग्निपरीक्षा है।

