चुनावी चौपालमध्यप्रदेश

MP : कांग्रेस में टिकट कटवाने के लिए जोर आजमाइश

भोपाल

  • कांग्रेस मेंप्रत्याशी चयन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। टिकट के लिए कांग्रेस नेताओं में आपसी टकराव दिखाई देने लगा है।
  • करीब आधा दर्जन सीटों पर ऐसे दावेदार सामने आए हैं, जिनमें जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा नजर आ रही है। कुछ दावेदारों के खिलाफ ऐसे भी नेता लगे हैं, जिन्हें वे टिकट नहीं दिलाने के लिए जुटे हैं और कुछ नेता एक- दूसरे का टिकट कटवाने की कोशिशें कर रहे हैं।
  • होशंगाबाद सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व सांसद रामेश्वर नीखरा और पूर्व विधायक सविता दीवान की प्रमुख दावेदारी है। तीनों नेता हार देख चुके हैं, जिनमें से पचौरी हाल ही का विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। नीखरा लोकसभा और दीवान पूर्व में विधानसभा में पराजित हो चुकी हैं। पचौरी और नीखरा टिकट पाने के लिए क्षेत्र और संगठन में तेजी से सक्रिय हैं।

मामा-भानजे की सक्रियता

  • वहीं सतना लोकसभा सीट पर मामाभानजे राजेंद्र सिंह-अजय सिंह टिकट पाने के लिए एक-दूसरे को कमजोर बताने में जुटे हैं।
  • दोनों नेता क्षेत्र में सक्रिय हैं, लेकिन राजेंद्र सिंह बाहरी प्रत्याशी बताकर अजय सिंह का दबे स्वरों में विरोध कर रहे हैं।
  • हकीकत यह है कि अजय सिंह 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद मात्र 8000 वोटों के मामूली अंतर से हार को आधार बनाकर यहां से दावा ठोक रहे हैं। अजय सिंह लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका गंवाना नहीं चाहते, इसलिए वे दिल्ली की दौड़ भी लगा रहे हैं।

विधानसभा का बदला लोस चुनाव में लेने की तैयारी

  • निमाड़ की खंडवा लोकसभा सीट पर अरुण यादव की संभावित उम्मीदवारी को देखते हुए कई स्थानीय नेता उनका टिकट कटवाने की कोशिश कर रहे हैं। कहा जाता है कि यादव ने विधानसभा चुनाव 2018 में जिन क्षेत्रीय नेताओं के टिकट कटवाने की कोशिशें की थीं, वे अभी से क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने की स्थिति में उन्हें न केवल भाजपा, बल्कि अपने दलों के कुछ नेताओं से भी अप्रत्यक्ष रूप से जूझना पड़ेगा।

अभी टिकट कटवाना प्राथमिकता

  • विंध्य की शहडोल सीट पर उपचुनाव हारी हिमाद्री सिंह का नाम सामने आते ही क्षेत्रीय नेता सक्रिय हो गए हैं। विधायक फुंदेलाल मार्को ने तो रायशुमारी के दौरान हिमाद्री का विरोध किया था। हिमाद्री सिंह के पति भाजपा में हैं, विधानसभा चुनाव में उनके आरोप लगे। अब उन्हें लोकसभा में प्रत्याशी बनाए जाने से रोकने के लिए क्षेत्रीय कांग्रेस नेता एकजुट दिखाई दे रहे हैं, जबकि लोकसभा उपचुनाव में उन्हें जिताने के लिए सभी ने काम किया था।

प्रशासनिक फेरबदल से टिकट के संकट की आहट

  • कमोबेश यही स्थिति ग्वालियर सीट की नजर आ रही है, जहां लगातार दो बार से लोकसभा चुनाव हार रहे अशोक सिंह फिर से प्रयास कर रहे हैं। अशोक सिंह ग्वालियर में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट के नहीं माने जाते हैं और हाल ही में वहां हुए प्रशासनिक फेरबदल में भी दोनों के बीच की दूरियां सामने आईं।
  • इस बार ग्वालियर के टिकट वितरण में सिंधिया की भूमिका अहम रहेगी, जिससे अशोक सिंह का टिकट संकट में बताया जा रहा है।

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