
रायपुर। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सरहद पर बसा कर्रेगुट्टा… एक ऐसा इलाका, जो कभी नक्सल हिंसा की सबसे मजबूत पनाहगाह माना जाता था। करीब पांच हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह पहाड़ी अब पूरी तरह सुरक्षाबलों के नियंत्रण में है।
जहां कभी बंदूकें गरजती थीं,आज वहां शान से तिरंगा लहरा रहा है।बीते नौ दिनों से चल रहे ऑपरेशन कर्रेगुट्टा ने नक्सलवाद की कमर तोड़ दी है।यह वही इलाका है,जहां नक्सलियों के सबसे खतरनाक चेहरे —हिडमा, देवा, दामोदर, आज़ाद और सुजाता —सालों से छिपे हुए थे। अब वह गढ़ ढह चुका है।देश में उग्रवाद के खिलाफ चलाए गए अब तक के सबसे बड़े अभियानों में से एक इस ऑपरेशन में लगभग 24 हज़ार जवानों ने हिस्सा लिया।
डीआरजी, एसटीएफ, बस्तर फाइटर्स, कोबरा और सीआरपीएफ — राज्य और केंद्रीय बलों की सभी इकाइयाँ इस अभूतपूर्व अभियान का हिस्सा बनीं। ड्रोन, हेलीकॉप्टर और हाई-टेक सर्विलांस के ज़रिए पूरे क्षेत्र की सतत निगरानी की गई। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खुद ऑपरेशन की कमान संभाली, तो वहीं सीआरपीएफ के डीजी जीपी सिंह भी हर पल हालात पर नज़र रखे हुए थे।
21 अप्रैल को शुरू हुआ ये ऑपरेशन करीब 800 वर्ग किलोमीटर के पहाड़ी क्षेत्र में चलाया गया। बीजापुर जिले से सटा यह इलाका तेलंगाना के मुलुगु ज़िले की सीमा तक फैला है — जहां नक्सली सालों से अपना नेटवर्क चला रहे थे। यह क्षेत्र नक्सलियों की सैन्य संरचना के लिहाज से पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन नंबर-1 का मकसद और मक़ाम दोनों था। लेकिन अब वहां सिर्फ एक ही निशान है —
भारत का तिरंगा।