नईदिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने नौ दोषियों की सजा उम्रकैद में बदली
नईदिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने हरियाणा के मिर्चपुर गांव में 70 वर्षीय एक बजुर्ग दलित एवं उनकी दिव्यांग बेटी की जिंदा जलाकर हत्या किये जाने के मामले में दबंग जाट समुदाय से संबद्ध 15 व्यक्तियों की दोषसिद्धि एवं सजा के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी. वर्ष 2010 में हरियाणा के हिसार जिले के मिर्चपुर गांव में जाट समुदाय से संबद्ध दबंगों ने एक बुजुर्ग दलित एवं उनकी दिव्यांग बेटी के घर में आग लगा दी थी.
जस्टिस एस. मुरलीधर एवं जस्टिस आई एस मेहता की पीठ ने कहा कि आजादी के 71 साल बाद भी अनुसूचित जाति समुदाय पर अत्याचार में कमी के कोई संकेत नहीं दिखते हैं. शुक्रवार को अदालत ने इस मामले में नौ दोषियों की सजा बढ़ाकर उम्रकैद की. इसके साथ ही अदालत ने मिर्चपुर दलित हत्याकांड में 20 लोगों को बरी करने का फैसला पलटा और उन्हें दोषी करार दिया गया.
अदालत ने हरियाणा सरकार को दलित समुदाय से संबद्ध उन परिवारों के पुनर्वास का निर्देश दिया, जो वर्ष 2010 की इस घटना के बाद विस्थापित हो गये थे.हाईकोर्ट ने निचली अदालत से इन 15 व्यक्तियों की दोषसिद्धी तथा सजा को चुनौती देने वाली उनकी अपील पर यह फैसला सुनाया.
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पीडि़तों एवं पुलिस ने भी हाईकोर्ट में दोषियों की सजा बढ़ाने की मांग की थी एवं अन्य को बरी किये जाने को चुनौती दी थी.निचली अदालत ने 24 सितंबर, 2011 को जाट समुदाय से संबद्ध 97 व्यक्तियों में से 15 को दोषी ठहराया था.
गांव के जाट एवं दलित समुदाय के बीच विवाद के बाद 21 अप्रैल, 2010 को तारा चंद के घर को आग लगा दी गयी थी. घटना में पिता-पुत्री की जल कर मौत हो गयी थी.निचली अदालत ने 31 अक्तूबर, 2011 को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के तहत गैरइरादतन हत्या के अपराध के लिये कुलविंदर, धरमबीर और रामफल को उम्रकैद की सजा सुनायी थी.
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इसके अलावा पांच अन्य बलजीत, करमवीर, करमपाल, धरमबीर और बोबल को दंगा फैलाने, जानबूझकर नुकसान पहुंचाने, हानि पहुंचाने और पीडि़तों के घर को आग के हवाले करने तथा अजा/अजजा (अत्याचार रोकथाम) कानून के प्रावधानों समेत उनके अपराधों के लिये पांच साल जेल की सजा सुनायी गयी थी.
सात अन्य को हल्के दंड प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था. निचली अदालत ने उन्हें परिवीक्षा पर रिहा कर दिया था. इससे पहले निचली अदालत ने मामले में 97 आरोपियों में से 82 को बरी कर दिया था.
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