धर्म

जानिए 13 को मनायें या 14 फरवरी को मनायें महाशिवरात्रि

पं. अभिषेक कृष्ण शास्त्री जी के अनुसार –

सनातन धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व प्रतिपादित है। भगवान शिव की आराधना का यह विशेष पर्व माना जाता है। पौराणिक तथ्यानुसार आज ही के दिन भगवान शिव की लिंग रूप में उत्पत्ति हुई थी। प्रमाणान्तर से इसी दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ है। अतः सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा यह व्रत एवं उत्सव दोनों में अति हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे तो सम्पूर्ण भारतवर्ष में इसकी महिमा प्रथित है परन्तु भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिगों के क्षेत्र में तथा उनमें भी तीनों लोकों से अलग शिवलोक के रूप में प्रतिष्ठित काशी एवं यहाँ पर विराजमान भगवान विश्वेश्वर के सान्निध्य में तो भक्ति एवं उत्सव का समवेत स्वरूप देखते ही बनता है ।

 वैसे तो प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है परन्तु इस वर्ष कुछ पंंचांगकारोंं एवं धर्माधिकारियों के द्वारा इस पर्व की तिथि को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। इस सम्बन्ध में कुछ लोग 13 फरवारी तो कुछ लोग 14 फरवरी को इसके आयोजन एवं अनुष्ठान का उपदेश कर रहे हैं। परन्तु हमारी सनातन व्यवस्था में इसका ठीक-ठीक निर्धारण ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र के सामञ्जस्य से ही सम्भव है। अतः प्रस्तुत विषय का संज्ञान लेते हुए अखिल भारतीय भागवत चिंतन सेवा समिति(रजि.) की  अध्यक्षता में दिनांक 27:1:2018 को एक बैठक आयोजित की गई, उक्त बैठक में विचार विमर्शपूर्वक देखा गया कि फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि होती है। परन्तु इसके निर्णय के प्रसंग में कुछ आचार्य प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तो कुछ निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी में महाशिवरात्रि मानते है। परन्तु अधिक वचन निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के पक्ष में ही प्राप्त होते है।
 कुछ आचार्यों जिन्होने प्रदोष काल व्यापिनी को स्वीकार किया है वहाॅं उन्होने प्रदोष का अर्थ ‘अत्र प्रदोषो रात्रिः’ कहते हुए रात्रिकाल किया है।
ईशान संहिता में स्पष्ट वर्णित है कि ‘‘ फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्याम् आदि देवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः।। तत्कालव्यापिनी ग्राहृा शिवरात्रिव्रते तिथिः।।’ फाल्गुनकृष्ण चतुर्दशी की मध्यरात्रि में आदिदेव भगवान शिव लिंग रूप में अमितप्रभा के साथ उद्- भूूूत हुए अतः अर्धरात्रि से युक्त चतुर्दशी ही शिवरात्रि व्रत में ग्राहृा है।

 धर्मशास्त्रीय उक्त वचनों के अनुसार इस वर्ष दिनांक 13/02/2018 ई. को चतुर्दशी का आरम्भ रात्रि 10ः 22 बजे हो रहा है तथा इसकी समाप्ति अग्रिम दिन दिनांक 14/02/2017 ई. को रात्रि 12: 17 मिनट पर हो रही है। अतः ‘एकैक व्याप्तौ तु निशीथ निर्णयः’’ इस धर्मशास्त्रीय वचन के अनुसार चतुर्दशी 13 फरवरी को निशीथ काल एवं 14 फरवरी को प्रदोष काल में प्राप्त हो रही है ऐसे स्थिति में निशीथ के द्वारा ही इस वर्ष शिवरात्रि का निर्णय किया जाएगा। निशीथ का अर्थ सामान्यतया लोग अर्धरात्रि कहते हुए 12 बजे रात्रि से लेते है
परन्तु निशीथ काल निर्णय हेतु भी दो वचन मिलते है माधव ने कहा है कि रात्रिकालिक चार प्रहरों में द्वितीय प्रहर की अन्त्य घटी एवं तृतीय प्रहर के आदि की एक घटी को मिलाकर दो घटी निशीथ काल होते है।   मतान्तर से रात्रि कालिक पन्द्रह मुहूर्त्तो्ं में आठवां मुहूर्त निशीथ काल होता है।

 अतः इस वर्ष 13 फरवरी को निशीथकाल 11: 34:30 से 12: 26: 00 तक तथा 14 फरवरी 11:35:38 से 12:27:02  तक तथा प्रमाणान्तर दोनों दिवसों में रात्रि 11 बजे से 01 बजे तक हो रहा है। अतः  ‘‘ पूरे द्युः प्रागुक्तार्धरात्रस्यैकदेशव्याप्तौ पूर्वेद्युः ’’ वचन के अनुसार 14 फरवरी को (रात्रि 11:35:38 से 12: 27: 02 बजे तक) पूर्ण निशीथ काल के पूर्व 12:17 मिनट पर चतुर्दशी समाप्त हो जाने से पूर्ण निशीथ व्यापिनी नहीं मानी जा सकती। अत एव स्पष्ट से धर्मशास्त्रीय वचनानुसार दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि व्रतोत्सव मनाया जाएगा। इसी आशय से काशी के महत्वपूर्ण पंचाङगो मे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित श्रीविश्वपञ्चाग एवं शिवमूर् ति हृषीकेशपंचांगो आदि में भी दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि लिखा गया है।
अत: दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि  मनायी जायेगी ।

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