ओमान के पुराने जगुआर बने IAF का सहारा, स्पेयर पार्ट्स की कमी पूरी करने में बड़ी मदद

भारतीय वायु सेना के लिए ओमान का हालिया फैसला किसी मुश्किल वक्त में मिली बड़ी मदद जैसा है। दुनिया भर में जहां जगुआर लड़ाकू विमान इतिहास की किताबों में दर्ज होकर उड़ान भरना बंद कर चुके हैं, वहीं भारतीय वायु सेना अब भी इन एंग्लो-फ्रेंच जेट्स पर निर्भर है। ऐसे में ओमान ने अपने 20 से ज्यादा रिटायर्ड जगुआर भारत को देने का निर्णय लेकर IAF की सबसे बड़ी चिंता—स्पेयर पार्ट्स—को काफी हद तक कम कर दिया है।
ये विमान आसमान में उड़ान भरने के लिए तो नहीं लौटेंगे, लेकिन इन्हें तोड़ा जाएगा ताकि उन हिस्सों का इस्तेमाल IAF के मौजूदा जगुआर बेड़े को और कुछ साल सुचारू रूप से उड़ाने में किया जा सके। दुनिया भर में जगुआर बनाने वाली फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने जेट रिटायर कर दिए हैं, और अब ओमान भी इन्हें ऑपरेशन में नहीं रखता। ऐसे माहौल में स्पेयर्स की उपलब्धता भारतीय वायु सेना के लिए लगातार चुनौती बनती जा रही थी।
1979 में भारत में पहली बार शामिल हुए जगुआर ने कई अहम मिशनों, खासकर कारगिल युद्ध के दौरान, अपनी क्षमता साबित की। हालांकि अपग्रेड और ओवरहॉल के जरिए इनकी सर्विस लाइफ बढ़ाई गई, लेकिन पुर्ज़ों की कमी अब इन्हें जमींदोज़ करने की नौबत ला रही थी। इससे पहले फ्रांस और ब्रिटेन भी कुछ रिटायर्ड जगुआर भारत भेज चुके हैं, अब ओमान की यह नई खेप IAF के लिए राहत की एक और परत जोड़ रही है।
IAF की बड़ी चुनौती यह है कि उसे 42 फाइटर स्क्वॉर्डन की जरूरत है, जबकि मौजूदा संख्या सिर्फ 30 है। राफेल और तेजस आने में अभी समय है, इसलिए इस गैप को फिलहाल जगुआर जैसे पुराने लेकिन भरोसेमंद विमानों से ही भरा जा रहा है। ऐसे में ओमान का यह कदम भारतीय वायु सेना के लिए किसी ‘लाइफ सपोर्ट सिस्टम’ से कम नहीं।


