गांधी की हत्या को लेकर आखिर नेहरू जी पर भी क्यों उठे सवाल?

महात्मा गांधी की हत्या के मामले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक (RSS) और हिंदू महासभा जैसे संगठनों पर तो लगातार सवाल उठते ही रहे हैं लेकिन सीनियर बीजेपी लीडर और राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने साल 2016 में कांग्रेस और और जवाहर लाल नेहरू पर ही इस मामले में सवाल खड़े कर दिए थे. स्वामी का आरोप है कि गांधी की हत्या से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जिन पर कभी चर्चा ही नहीं की गई. स्वामी ने मांग की थी कि उस दुखद घटना के हर पहलू की चर्चा करके उसे सार्वजनिक किया जाए और देश के लोगों का भ्रम दूर किया जाए कि आख़िर वास्तविकता क्या है ? जानिए क्या हैं ये सवाल ?
1. स्वामी ने राज्यसभा में सवाल उठाया है कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद आखिर क्यों उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं किया गया था. गोली लगने के बाद महात्मा गांधी को घायल अवस्था में किसी भी अस्पताल नहीं ले जाया गया, बल्कि उन्हें घटनास्थल पर ही मृत घोषित कर दिया गया और बिना पोस्टमार्टम के शव को दर्शन के लिए बिड़ला हाउस में रख दिया गया. स्वामी के मुताबिक कानूनन जब भी किसी व्यक्ति पर गोलीबारी होती है, और उसमें उसे गोली लगती है तो सबसे पहले उसे पास के अस्पताल ले जाया जाता है और मृत्यु हो जाने पर वहां मौजूद डॉक्टर ही शरीर का परिक्षण करने के बाद उसे ‘ऑन एडमिशन’ या ‘आफ्टर एडमिशन’ मृत घोषित करते हैं. हालांकि ऐसा सामने आया है कि गांधी का परिवार उनका पोस्टमार्टम नहीं चाहता था लेकिन इतने बड़े केस में कानूनी प्रक्रिया का पालन न होना समझ से बाहर है.
2. कितनी गोलियां लगीं: स्वामी ने रॉयटर्स, एचटी और न्यूयॉर्क टाइम्स की फोटो का हवाला देते हुए कहा था कि इन तस्वीरों में गांधी के शरीर पर चार गोलियों के निशान हैं जबकि दर्ज दस्तावेज में गांधी को 3 गोली ही गांधी जी को जिस पिस्तौल से गोली मारी गयी उस पर भी स्वामी ने सवाल उठाया है. उन्होंने लिखा है कि गांधी जी को गोडसे ने जिस इटालियन बरेटा पिस्टल से गोली मारी थी, वह सिर्फ अंग्रेज सैनिकों को उपलब्ध थी. फिर वह गोडसे के पास कैसे आई , इस बात की जांच क्यों नहीं करायी गयी.
3. स्वामी ने इस बात पर भी सवाल खड़े किये हैं कि जब 20 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के प्रयास में गोडसे को गिरफ्तार किया गया था तो माउंटबेटन ने उसकी जमानत क्यों करवाई थी. स्वामी के मुताबिक 20 जनवरी 1948 को गोडसे को गांधी जी को देशी बम से मरने की नाकाम कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था हालांकि 22 जनवरी को वायसराय लार्ड माउंटबेटन गोडसे को रिहा करा दिया था.
4. RSS पर सवाल: स्वामी का आरोप है कि गांधी की हत्या से जुड़े हर पहलू को नेहरू की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने अनावश्यक रूप से रहस्यमय बना दिया है. बता दें कि गांधी जी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया माधव सदाशिव गोलवलकर ऊर्फ गुरुजी को गिरफ़्तार करवाने के बाद आरएसएस समेत कई हिंदूवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. गांधी की हत्या में संघ की संलिप्तता का कोई ठोस सबूत न मिलने के चलते छह महीने बाद 5 अगस्त 1948 को गोलवलकर रिहा कर दिए गए थे. इसके बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने सांस्कृतिक संगठन बने रहने की शर्त पर 11 जुलाई 1949 को संघ से प्रतिबंध हटा लिए थे.
हालांकि सरकारी दस्तावेजों में दर्ज तथ्य है कि सरदार पटेल ने गोलवलकर को लिखे एक पत्र में साफ तौर पर कहा था कि ‘उनके (संघियों के) सभी भाषण सांप्रदायिक जहर से भरे थे. इस जहर के परिणामस्वरुप देश को गांधीजी के प्राणों की क्षति उठानी पड़ी.’ पटेल ने आगे जोड़ा, ‘आरएसएस के लोगों ने गांधीजी की मृत्यु के बाद खुशी जाहिर की और मिठाइयां बांटीं.’ 18 जुलाई 1948 को श्यामाप्रसाद मुखर्जी को लिखे अपने पत्र में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा: ‘गांधीजी की हत्या और आरएसएस-हिंदू महासभा के बारे में मामला न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए इन दोनों (संगठनों) की संलिप्तता के बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा लेकिन हमारी सूचना यह पुष्ट करती है कि इन दोनों संगठनों की गतिविधियों की वजह से, खास तौर पर पहली (आरएसएस) की वजह से, देश में एक ऐसा वातावरण तैयार किया गया जिस कारण से यह खौफनाक हादसा संभव हुआ.’
5. नेहरू ने मिलने नहीं दिया: पीएम मोदी पर किताब लिखने वाले हरिगोविंद विश्वकर्मा का दावा है कि गांधी का हत्यारा नाथूराम चाहताा था कि गांधीवाद के पैरोकार उनसे गांधी की नीतियों पर चर्चा करें, ताकि वह साबित कर सके कि गांधीवाद से देश का कितना नुक़सान हुआ है. गांधी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से मुलाक़ात में भी गोडसे ने कहा था- आज आप मेरी वजह से अपने पिता को खो चुके हैं. आप और आपके परिवार पर जो वज्रपात हुआ है, उसका मुझे ख़ेद हैं मैंने गांधी की हत्या व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राजनीतिक कारणों से की है. आप पुलिस से पूछिए, अगर पौने घंटे का वक़्त दें, जिससे मैं आपको बता सकूं कि मैंने गांधी जी की हत्या आख़िर क्यों की ?” हालांकि पुलिस ने उन्हें तीन मिनट से ज़्यादा मिलने का वक़्त नहीं दिया था.
हरिगोविंद के मुताबिक गांधी के तीसरे पुत्र रामदास गांधी ने नाथूराम को फ़ांंसी की सज़ा सुनाए जाने के तीन महीने बाद अंबाला जेल में 17 मई 1949 को एक लंबा भावपूर्ण पत्र भेजा और नाथूराम को अहसास कराने की कोशिश कि गांधी की हत्या करके नाथूराम ने ऐसी ग़लती की जिसका एहसास उन्हें नहीं है, तब नाथूराम ने उनसे भी इस विषय पर चर्चा करने की अपील की थी. रामदास ने लिखा था, ‘मेरे पिता जी की नाशवान देह का ही आपने अंत किया है, और कुछ नहीं इसका ज्ञान आपको एक दिन होगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’ 3 जून 1949 को रामदास को भेजे जवाब में नाथूराम ने उनसे मिलने और गांधी की हत्या पर बातचीत करने की इच्छा जताई थी लेकिन इजाज़त नहीं दी गई. हालांकि उसके बाद रामदास और नाथूराम के बीच कई पत्रों का आदान-प्रदान हुआ.
आरोप है कि रामदास तो नाथूराम से मिलने के लिए तैयार हो गए थे, लेकिन उन्हें नेहरू ने इजाज़त नहीं दी. इस पर दो बड़े गांधीवादियों आचार्य विनोबा भावे और किशोरी लाल मश्रुवाला को नाथूराम से मिलाने और उनके साथ चर्चा करके पक्ष जानने की कोशिश भी की गई थी लेकिन नेहरू किसी भी तरह की बातचीत के लिए तैयार नहीं थे. गांधी की हत्या से जुड़े साहित्य और नाथूराम गोडसे के इकबालिया बयान के प्रकाशन को भी कांग्रेस सरकार ने प्रतिबंधित किया हुआ था. इस प्रतिबंध को 1977 में पहली बार अस्तित्व में आई गैर-कांग्रेसी सरकार ने हटाया.