छत्तीसगढ़रायपुर

बघेल सरकार को असमंजस में डाला शराबबंदी

  • कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में जिन कारणों से भारी बहुमत मिला है, उसमें से एक है किसानों की ऋण माफी. वहीं छत्तीसगढ़ की आधी आबादी यानी महिलाओं ने कांग्रेस पार्टी की पूर्ण शराबी बंदी के मुद्दे को हाथों हाथ लेते हुए भारी मतों से जीत दिलाई.
  • राहुल गांधी के वादे के मुताबिक, प्रदेश में किसानों के ऋण माफी कर दी गई, पर नई सरकार में शराबबंदी को लेकर इस तरह की कोई भी जल्दबाजी नहीं दिख रही है.
  • मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शराबबंदी को लेकर कहा, “शराबबंदी कोई नोटबंदी नहीं है कि झट से हो जाएगी. शराब एक सामजिक बुराई है और कांग्रेस सरकार सब को विश्वास में लेकर कदम उठाएगी. जब तक नई शराब नीति नहीं बन जाती, पुरानी व्यवस्था चलती रहेगी. हम नहीं चाहते शराब की दुकानें बंद होने के बाद शराब की घर पहुंच सेवा प्रदेशभर में शुरू हो जाए.”
  • अगर इस बयान को ध्यान से पढ़ें तो साफ इंगित कर रहा है कि नई सरकार प्रदेश में शराबबंदी लागू करने के लिए कोई जल्दबाजी में नहीं है.
  • पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक हर मंच से शराबबंदी के मुद्दे को उठाने में नहीं चूक रहे हैं. आखिर शराबबंदी को लेकर दिक्कतें क्या हैं जो सरकार इसे लागू करने में हिचकिचा रही है? जबकि 6 हजार 100 करोड़ के ऋण माफी मुद्दे को लेकर सरकार में कोई घबराहट नहीं दिखी थी.
  • प्रदेश के नए वाणिजिक कर मंत्री टीएस सिंहदेव ने स्वीकार किया कि शराब की बिक्री से राजकोष को 4 हजार करोड़ से भी अधिक का राजस्व मिलता है.
  • शराबबंदी की पृष्टभूमि में जाते हुए सिंहदेव ने कहा कि जन-घोषणा पत्र बनाने को लेकर जब वो प्रदेशभर में घूम रहे थे तो लगभग सभी जगह पर महिलाओं ने पुरजोर तरीके से बात रखी थी कि प्रदेश में शराब की बिक्री पर पाबंदी लगे क्योंकि महिलाएं ही सबसे ज्यादा शराब के चलते प्रताड़ना के शिकार होते हैं. इसी के चलते कांग्रेस ने “किसानों का ऋण माफ और बिजली बिल हाफ” के नारे के साथ प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी का वादा अपने घोषणा पत्र में किया था.
  • लेकिन शराब लॉबी के वर्चस्व को तोड़ना इतना आसान लगता नहीं है. क्योंकि कांग्रेस पार्टी में आज भी कुछ लोग ऐसे है, जो पूर्ण शराबबंदी का विरोध कर रहे हैं. पूर्ण शराबबंदी के लिए भले ही इन नेताओं के सार्वजनिक बयान कुछ भी हों, लेकिन एक वरिष्ठ मंत्री ने भी माना कि शराब लॉबी के प्रभाव में आकर पूर्ण शराबबंदी के खिलाफ कुछ लोग माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
  • ऋण माफी और अन्य लोक लुभावनी योजनाओं के कारण नई सरकार को कम से कम 10 हजार करोड़ रुपए की जरूरत है. शराब औऱ पेट्रोल-डीजल के वैट से राज्य शासन को लगभग सालाना 8 हजार करोड़ रुपए मिलते हैं. ऐसे में कर राजस्व में कमी को देखते हुए ही कुछ मंत्री सरकार पर पूर्ण शराबबंदी को लेकर पुनर्विचार की बात कह रहे हैं.
  • मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है, “टीम अन्य राज्यों का दौरा करके यह जानने की कोशिश करेगी कि वहां शराबबंदी की नीति कितनी सफल रही है. इसके बाद, उसी अध्ययन दल की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.”
  • लेकिन कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पूर्ण शराबबंदी किसी भी राज्य में आज तक सफल नहीं हुई है औऱ सरकार विचार करे कि, बीजेपी सरकार ने जो शुरू किया था “सहज, सुलभ शराब की उपलब्धता” उस पर रोक लगे. मुख्यमंत्री के बातों को दोहराते हुए कहा कि “शराबबंदी हो लेकिन उसके बदले शराब की घर पहुंच सेवा शुरू न हो जाए.”
  • सरकार के कई मंत्री भी चाहते हैं कि शराबबंदी को सोच समझकर लागू किया जाए, ताकि सरकार को कहीं पर भी यू-टर्न लेना न पड़े. शराब की उपलब्धता कम की जाए और साथ ही शराब को महंगा किया जाए. ताकि लोगों को शराब सहज और सुलभ न मिले.
  • कांग्रेस के एक बड़े नेता ने ये भी कहा कि “हमें महिलाओं का वोट चाहिए लेकिन साथ में पुरुषों का भी वोट चाहिए, क्योंकि एक बड़ी आबादी अब शराबखोरी का मजा लेने लगी है. उनसे अगर शराब छीन लिया जाए तो बिना कारण के सरकार का विरोध करने वालों का एक बड़ा खेमा तैयार हो जाएगा. इसलिए शराब को महंगा किया जाए और पास नहीं दूर दराज इलाकों में दुकानें खोली जाएं.”
  • नेताओं के बयान कुछ भी हो, सार्वजनिक रूप से हर कांग्रेसी कहता है कि प्रदेश में शराबबंदी हो, लेकिन दूसरी तरफ 4 हजार करोड़ से अधिक के राजस्व के मोह को भी क्या सरकार त्याग कर पाएगी? शायद यही कारण है कि बघेल सरकार शराबबंदी के मुद्दे पर फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है ताकि सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे.

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