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नईदिल्ली : देश की डेमोग्राफी बदलने की हो रही है कोशिश

नई दिल्ली  :  रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने की कोशिश करने वालों की पहचान होनी चाहिए। केंद्र ने कहा कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि कौन देश के डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) को बदलने की कोशिश कर रहा है और देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने की कोशिश कर रहा है, इसको देखने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में इस दौरान याचिकाकर्ता ने रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए हेल्थ और बच्चों के लिए एजुकेशन देने की गुहार लगाई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल कोई अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दलील दी कि ये मामला राजनयिक स्तर पर सुलझाने दिया जाए इसमें कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश में रहने वाले हर शख्स को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं दी जा रही है। इस मामले में देश के नागरिक या फिर विदेशी में कोई फर्क नहीं किया जाता है। इससे पहले याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मामले में अंतरिम आदेश पारित किया जाना चाहिए। रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को बेसिक एजुकेशन और हेल्थ की सुविधाएं दी जाए। इस मामले में केंद्र सरकार को निर्देश देने की गुहार लगाई गई और कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट अंतरिम आदेश पारित करे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार ने जो हलफनामा दायर किया है और जो जवाब दाखिल किया है, उसके तहत हम कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में आखिरी सुनवाई 9 अप्रैल को होगी।
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस नहीं भेजा जाना चाहिए। उन्हें तमिल शरणार्थियों की तरह रहने देना चाहिए। शरणार्थियों के जीवन का सवाल है। म्यांमार में इनके जान को खतरा है इसलिए ये भागकर यहां आए हैं। इनके हेल्थ और एजुकेशन के लिए सुविधाएं होनी चाहिए। इनके मानवाधिकार को सबसे पहले प्रोटेक्ट किया जाना जरूरी है। गरीबों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही है। इस दौरान एक अन्य वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि रोहिंग्याओं को अस्पताल में इलाज नहीं मिल रहा और उनके बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिया जा रहा है।तब भारत सरकार की ओर से अडिशनल सलिसिटर जनरल ने कहा कि रोहिंग्या घुसपैठियों का मामला राजनयिक स्तर पर सुलझाया जाएगा। इस मामले में म्यांमार, बांग्लादेश और भारत के बीच राजनयिक स्तर पर बातचीत चल रही है। इस मामले को राजनयिक स्तर पर सुलझाने के लिए छोड़ा जाना चाहिए। जहां तक इलाज का सवाल है तो भारतीय और गैरभारतीय सबका इलाज होता है, इसमें कोई भेदभाव नहीं है। सवाल ये है कि इस तरह का पीआईएल कहां से आ रहा है और कौन इसके पीछे है, ये देखा जाना चाहिए। याचिकाकर्ता मीडिया के हेडलाइन बनाने के लिए इस तरह के मामले उठाते हैं। ऐसे मामले में आदेश पारित नहीं होना चाहिए।
रोहिंग्या शरणार्थियों की शिविर की स्थिति रिपोर्ट मांगी
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और कई राज्यों से कहा है कि वह कैंपों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति के बारे में समग्र स्थिति रिपोर्ट पेश करें। दरअसल सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोन्जाल्विस ने कहा कि शरणार्थी शिविरों की स्थिति ठीक नहीं है और काफी गंदगी है। केंद्र, हरियाणा, राजस्थान और जम्मू कश्मीर में शिविरों को बेहतर किया जाना चाहिए। साथ ही साफ-सफाई मुहैया कराया जाना चाहिए। शिविरों की स्थिति बदतर होने की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है।
 

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