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इंसानों को भी मात देते थे यह खोजी कुत्ते, सेना में मिला मान

रायपुर। देश की सुरक्षा में सिर्फ जाबाज़ सैनिक ही नहीं बल्कि कुछ इंवेसीगेटिव डॉग्स यानी खोजी कुत्तों की भी अहम् भूमिका होती है। यह खोजी कुत्ते बिल्कुल किसी जाबाज़ सैनिक की तरह बॉर्डर पर और वारदात स्थलों पर अपनी छाप छोड़ते हैं और दुश्मन को अपनी तेज़ नाक के बलबूते ढूंढ निकालते हैं। एक ऐसा ही जाबाज़ योद्धा हुआ ज़ूम, जिसकी तैनाती जम्मू कश्मीर में थी बीते 10 अक्तूबर को ज़ूम अनंतनाग के टंगपावा इलाके में आतंकियों की गोली का शिकार हो गया था। यह घटना तब घटी जब आतंकियों से भरे एक कमरे में पहुंचकर ज़ूम ने उनपर धावा बोला तो दहशतगर्दों ने उसे दो गोलियां मार दीं। इससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया था। गंभीर रूप से घायल होने के बाद ज़ूम की सर्जरी हुई जिसके बाद जूम की हालत स्थिर थी। उसके टूटे हुए पिछले पैर में प्लास्टर कर दिया गया था और चेहरे की चोटों का भी इलाज किया जा रहा था। आर्मी असॉल्ट डॉग जूम ने 72 घंटे तक बहादुरी से जूझते ‘इन द लाइन ऑफ ड्यूटी’ पर अपनी जान की कुर्बानी दे दी।

इससे पहले 30 जुलाई को उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले में आतंकवादी विरोधी ऑपरेशन में असॉल्ट डॉग एक्सेल गंभीर रूप से घायल होने के बाद शहीद हो गया था। सेना ने करीब ढाई माह में अपने दो बहादुर श्वान खो दिए। सेना की उत्तरी कमान में अपने इस बहादुर सहयोगी को श्रद्धांजलि दी गई।

बीते दिन हमारे छत्तीसगढ़ से भी एक घटना सामने आई जिसमें पुलिस विभाग में पदस्थ ट्रैकिंग डॉग मैगी का निधन हो गया। वो बीते 5 सालों से विभाग में अपनी सेवा दे रही थी और मैगी ने 30 से अधिक चोरी,मर्डर जैसी वारदातों के अपराधियों को ढूंढने में ख़ास भूमिका निभाई थी। मैगी ने कुछ अंधे कत्ल की गुत्थी को भी सुलझाने में पुलिस की मदद की थी। जिसके लिए तत्कालिन पुलिस अधीक्षक गरियाबंद के द्वारा मैगी को 2000 रूपये नगद से पुरस्कृत किया गया था। 06 वर्ष के उम्र में आज पुलिस डॉग (मैगी) का आकस्मिक निधन होने से पुलिस लाईन में रक्षित निरीक्षक उमेश राय के द्वारा अन्य कर्मचारियों के उपस्थिति में मैगी का विधिपूर्वक ससम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

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