कोरबा,
गोबर जैसी व्यर्थ समझी जाने वाली वस्तु को दो रूपए किलो में खरीदने की राज्य सरकार की गोधन न्याय योजना ग्रामीणों को रोजगार और कम समय में अधिक फायदा देने वाली साबित हो रही है। जिले के 215 गौठानांे में दो रूपए किलो में गोबर खरीदकर वर्मी कम्पोस्ट बनाकर पिछले एक साल में आठ करोड़ 32 लाख रूपए से अधिक का व्यवसाय पूरा करने की ओर बढ़ रहे हैं। जिले के 200 ग्रामीण और 15 शहरी गौठानों में अभी तक 14 हजार 777 टन गोबर खरीदा गया है। लगभग साढ़े नौ हजार गोबर विक्रेताओं को दो रूपए प्रति किलो की दर से इसके लिए दो करोड़ 95 लाख रूपए का भुगतान भी कर दिया गया है। गौठानों में स्वसहायता समूहों की महिलाओं ने खरीदे गए गोबर से तीन करोड़ 87 लाख रूपए की वर्मी-सुपर कम्पोस्ट खाद तैयार की है।
स्वसहायता समूह की महिलाओं और गौठान समितियों के सदस्यों को इस खाद की बिक्री से अभी तक तीन करोड़ 67 लाख रूपए मिल गए हैं वहीं लगभग 20 लाख रूपए की खाद बिक्री के लिए गौठानों मे उपलब्ध है। गौठानों के वर्मी टांको में अभी भी खाद बनाने के लिए गोबर भरा हुआ है और अगले 15 दिनों में इन टांको से करीब डेढ़ करोड़ रूपए की लगभग एक हजार 800 टन जैविक खाद मिलने की उम्मीद है।
कोरबा जिले के 200 गौठानों में पिछले साल के हरेली त्यौहार से गोधन न्याय योजना शुरू हुई है। इस के तहत जिले में अभी तक 14 हजार 777 टन गोबर खरीदी की गई है। इसमें से केवल 11 हजार टन गोबर से वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट खाद बनी है। 11 हजार टन गोबर से अभी तक तीन हजार 778 टन वर्मी कम्पोस्ट और 416 टन सुपर कम्पोस्ट खाद बन चुका है। इसमें से तीन करोड़ 67 लाख रूपए का खाद बेचा गया है और लगभग 20 लाख 48 हजार रूपए कीमत का खाद गौठानों में बिक्री के लिए उपलब्ध है।
बाकी बचा तीन हजार 700 टन गोबर अभी गोठानों के वर्मी टांकों में भरा है जिससे अगले 15 दिनों में लगभग एक हजार 800 टन खाद बनने की संभावना है। इस तरह पिछले एक साल में ही जिले के गौठान केवल गोबर खरीदी से लेकर जैविक खाद निर्माण-बिक्री से ही लगभग आठ करोड़ 32 लाख रूपए का व्यवसाय करने की तरफ बढ़ रहे हैं। इसमें से करीब छह करोड़ 62 लाख रूपए सीधे-सीधे गोबर विक्रेताओं और गौठान में काम कर रहे महिला समूहों और गौठान समितियों के सदस्यों को मिल भी चुके हैं।
जिले के गौठानों में आजीविका संवर्धन के कार्यों के लिए विभिन्न शासकीय योजनाओं के अभिसरण से कई स्थाई आधारभूत संरचनाएं भी बनाई गई है। गौठानों की स्थापना के दौरान जमीन समतलीकरण, फेंसिंग, ट्रेंचिंग, नलकूप खनन, वृक्षारोपण, कोटना-शेड-चबूतरा, चरवाहा कक्ष, एक्टिविटी शेड निर्माण आदि काम राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, जिला खनिज न्यास मद से लेकर 15वें वित्त मद के अभिसरण से कराए गए हैं। 200 गौठानों में तीन हजार 820 वर्मी टांके बनाए गए हैं। सौर उर्जा चलित पंपों से पानी की व्यवस्था की गई है। गौठानों में स्थापित कृषि सेवा केन्द्रों से ग्रामीणों को रियायती दरों पर खेती-किसानी के कामों के लिए उन्नत कृषि यंत्रों की उपलब्धता भी सुनिश्चित की गई है।
कई गौठानों में पशुओं की नस्ल सुधार के लिए ब्रीडिंग सेंटर भी बनाए गए हैं। नेपियर घास और मक्का का उत्पादन चारागाहों में चारा फसलों के रूप में किया जा रहा है। गौठानों की यह संरचनाएं स्थाई परिसंपत्तियों के रूप में ग्रामीणों की आजीविका संवर्धन का सशक्त माध्यम बन गई हैं जिनका उपयोग लंबे समय तक होगा। गौठानों में महिला समूहों की सहायता से गोबर से बनने वाले अन्य उत्पाद जैसे गमले, मूर्तियां आदि बनाने की मशीनें भी स्थापित की गई हैं। इसके साथ-साथ दूसरे अन्य आजीविकोपार्जन के काम जैसे दोना-पत्तल बनाना, अगरबत्ती निर्माण, खिलौना निर्माण, गोबर काष्ठ निर्माण, सब्जी उत्पादन, मशरूम उत्पादन, मुर्गी पालन, रेशम धागा उत्पादन, दीया-बाती निर्माण, राखी निर्माण, मोमबत्ती निर्माण आदि भी किए जा रहे हैं। इन गतिविधियों के लिए भी विभिन्न योजनाओं के अभिसरण से गौठानों में आधारभूत व्यवस्थाएं विकसित की गई हैं जो गौठानों की स्थाई परिसंपत्तियां हैं और इनका उपयोग आने वाले दिनों में आगे भी होता रहेगा।