जब सिंधी समाज ने अपने ही विधायक को सिखाया ”सबक’,वो हार जो कभी ना भुला पाए सुंदरानी

नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों राजनीती में हर समय एक जैसा नहीं रहता, ज़रूरी नहीं जो आज किसी पद पर आसीन हो वो हमेशा उस पद पर बरकरार रहे। यहाँ ज़िम्मेमदारियाँ और चेहरे बदलते रहते हैं, खासकर तब जब आप चुनाव हार जाएं, तो आप पार्टी के कम विश्वसनीय हो जाते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही राजनेता के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसी समय विधायक रहे मगर आज यह राजनेता हाशिये पर अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करते हुए नज़र आ रहे हैं।
हम जिस राजेनता की बात करने जा रहे हैं, वो हैं बीजेपी के पुराने नेताओं में शुमार श्रीचंद सुंदरानी, सुंदरानी रायपुर उत्तर विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। सिंधु परिवार में जन्मे श्रीचंद सुंदरानी का पढाई-लिखाई से कोई ख़ास सरोकार नहीं रहा। उन्होनें महज़ 8वीं तक की शिक्षा प्राप्त की है। पेशे से किसानी के अलावा ब्याज पर पैसे देना उनका व्यवसाय है। श्रीचंद सुंदरानी ने पार्षद से राजनीतिक सफर की शुरुआत की। चेंबर आफ कामर्स के अध्यक्ष रहने के साथ ही सिंधी समाज में भी अच्छा दखल माना जाता है। सुंदरानी ने बीजेपी में प्रदेश प्रवक्ता की भी ज़िम्मेदारी संभाली है। वो छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के करीबी नेताओं में शुमार हैं।
साल 2013 में पहली बार श्रीचंद सुंदरानी को बीजेपी ने पिछले चुनाव हार चुके तत्कालीन बेवरेज कारपोरेशन के अध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने का टिकट काटकर उत्तर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा था, उनका मुकाबला तत्कालीन कांग्रेस विधायक कुलदीप जुनेजा से था। सुंदरानी को साल 2013 चुनाव में कुल 52 हज़ार 164 वोट मिले वहीं जुनेजा 48 हज़ार 688 वोटों के साथ यह चुनाव हार गए।
इसके बाद सुंदरानी का उत्तर विधानसभा में डंका बजने लगा पूरा सिंधी समुदाय उनके समर्थन में पहले से था लेकिन चुनाव जीतने के बाद समाज की उम्मीदें सुंदरानी से और बढ़ गईं, यह कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव जीतने के बाद श्रीचंद सुंदरानी अपने ही समाज को किए गए वादों से मुकर गए बहुत हद तक समाज प्रमुखों की अनदेखी करने का भी उनपर आरोप लगा। और इस तरह सिंधी समुदाय में सुंदरानी अपनी पैठ खोते चले गए।
जब साल 2018 के विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित हुई तब कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां एक एक कर अपने प्रत्याशियों के नामों का एलान कर रहीं थीं। रायपुर के अंतर्गत चार विधानसभा सीटें आती हैं बीजेपी ने इनमें से तीन सीटों पर तो अपने प्रत्याशियों के नामों का एलान कर दिया था मगर सिर्फ उत्तर विधानसभा सीट से प्रत्याशी के नाम को गुप्त रखा था इनमें अपने एक सुंदरानी का विधानसभा का टिकट पार्टी ने सबसे अंत में घोषित किया था।
वहीं कांग्रेस ने पहले ही इस सीट से पूर्व विधायक रहे कुलदीप जुनेजा को बतौर प्रत्याशी मीडिया के सामने प्रेजेंट कर दिया था, और बीजेपी से आधिकारिक रूप से 2018 विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी बनने के बाद श्रीचंद सुंदरानी फूले नहीं समा रहे थे उन्हें यह गुरुर आ गया कि कांग्रेस के हारे हुए विधायक जुनेजा उन्हें इस बार क्या ही टककर दे पाएंगे वहीं दूसरी तरफ सिंधी समाज भी सुंदरानी के रवैये से पहले ही आहत चल रहा था। और इस तरह सुंदरानी का अति आत्मविश्वास, सिंधु समाज की उनके प्रति नाराज़गी कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी कुलदीप जुनेजा के फेवर में गई और जुनेजा इस सीट से जीतकर विधायक बने।
यह सुंदरानी के घमंड, उनके व्यवहार की हार थी, इसके कुछ समय तक वो मुख्यधारा की राजनीती से दूर हो गए। विधानसभा चुनाव हारने के बाद बीजेपी को अपने नए जिला अध्यक्ष की तलाश थी। भाजपा जिलाध्यक्ष की दौड़ में आरडीए के पूर्व अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, जिला महामंत्री जयंती पटेल, जिला उपाध्यक्ष मनोज प्रजापति भी थे, लेकिन आखिर वक्त पर मुहर श्रीचंद सुंदरानी के नाम पर लगी। और इस तरह विधानसभा चुनाव हरने के करीब तीन साल यानी बाद 27 अगस्त 2020 को तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु देव साय ने श्रीचंद सुंदरानी को रायपुर शहर जिले का जिलाध्यक्ष नियुक्त किया।
उस समय लगा कि मानो सुंदरानी के राजनितिक करियर को संजीवनी बूटी मिल गई हो मगर सुंदरानी की यह ज़िम्मेदारी ज़्यादा दिन नहीं चल पाए और उन्हें जिलाध्यक्ष बनाए जाने के महज़ 2 साल बाद 18 अक्टूबर 2022 को बीजेपी आलाकमान ने एक झटके में प्रदेश के 22 जिलाध्यक्षों को बदल दिया और उसमें श्रीचंद सुंदरानी का भी नाम शामिल था। यह सुंदरानी की दूसरी बार राजनितिक हार थी।
वर्तमान की बात की जाए तो श्रीचंद सुंदरानी पार्टी में एक बार फिर सक्रीय मोर्चे पर आने की कोशिश करते नज़र आ रहे हैं। मगर दोस्तों, आपको क्या लगता है क्या इस बार बीजेपी उन्हें एक बार फिर से रायपुर उत्तर विधानसभा सीट से टिकट देगी ? या फिर सुंदरानी ऐसे ही पार्टी में हाशिए पर रहेंगे ? श्रीचंद सुंदरानी क्या सिंधु समाज में अपने लिए एक बार फिर विश्वास जगा पाए हैं ?