
रायपुर। बीजापुर के गहरे जंगलों के बीच खड़ा है कर्रेगुट्टा – एक ऐसा पहाड़, जो बरसों तक नक्सलियों की खामोश ताकत का गवाह रहा। मगर अप्रैल 2025 की शुरुआत में जो कुछ हुआ, वो इतिहास में दर्ज हो गया – जैसे अंधेरे में पहली बार सूरज ने झाँका हो।
22 अप्रैल की सुबह। हल्की ठंडक और पहाड़ी हवाओं के बीच एक बड़े ऑपरेशन की नींव रखी गई। तीन राज्यों – छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र – की संयुक्त फोर्स ने कर्रेगुट्टा की ओर कदम बढ़ा दिए। यह कोई आम ऑपरेशन नहीं था, यह मिशन 2026 की पहली सीढ़ी थी – वह वादा जो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने देश से किया था: “31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद का पूरी तरह खात्मा।”
फोर्स जानती थी कि यह कोई आसान लड़ाई नहीं होगी। यह पहाड़ नक्सलियों के सबसे मजबूत किले जैसा था। यहां से उन्हें न सिर्फ चारों ओर निगरानी की सुविधा थी, बल्कि मिलिट्री कमांडर और सीसी मेंबर हिड़मा की लोकेशन भी यहीं की पुष्टि कर रही थी।
23 अप्रैल को आसमान में हेलीकॉप्टर गूंजने लगे। रसद और पानी पहाड़ों तक पहुँचाया गया। ऑपरेशन तेज़ हो चुका था। 24 अप्रैल, गोलियों की आवाज़ें गूंज उठीं – मुठभेड़ में तीन महिला नक्सली मारी गईं। मगर ये लड़ाई सिर्फ बंदूक की नहीं थी, यह इंसानियत और जीवट की भी परीक्षा थी। 25 अप्रैल को, डिहाइड्रेशन से जूझते 40 जवान अस्पताल भेजे गए।
इस बीच हिड़मा भाग चुका था – उसकी तलाश अब एक छाया की तरह थी।
26 अप्रैल को, फोर्स को बैकअप मिला – दो हजार जवान कर्रेगुट्टा की ओर रवाना हुए। अगली सुबह, पहाड़ के ऊपर तिरंगा लहराया गया। एक ऐसा पहाड़, जो सालों तक लाल झंडे का गवाह था, अब भारत के झंडे के नीचे खड़ा था।
29 अप्रैल को, नक्सलियों ने शांति वार्ता का प्रस्ताव भेजा। मगर सरकार और जवानों का मन बना चुका था – “अब पीछे नहीं हटेंगे।” 30 अप्रैल को गृह मंत्री विजय शर्मा ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।
1 मई, जवानों के हौसले को बरकरार रखने के लिए बैकअप फिर भेजा गया, वहीं रायपुर में बस्तर संभाग के ग्रामीणों ने भी मुख्यमंत्री से अपील की – “ये ऑपरेशन मत रोकिए, यही हमारी आज़ादी की उम्मीद है।”
10 मई तक, ऑपरेशन लगातार चलता रहा और आखिरकार कर्रेगुट्टा पूरी तरह फोर्स के नियंत्रण में आ गया। अब, बीजापुर में नक्सलियों के पास कोई मजबूत ठिकाना नहीं बचा है। कर्रेगुट्टा पर कब्जा सिर्फ एक सैन्य जीत नहीं है, यह एक मनोवैज्ञानिक मोर्चा है – एक संदेश कि अब छत्तीसगढ़ झुकने वाला नहीं।
बारिश के मौसम तक जवान इस पहाड़ी पर डटे रहेंगे। और नक्सली? उन्हें अब नए अड्डों की तलाश करनी होगी – शायद नए बहानों की भी। हालांकि अब ये खबरें हैं कि सीमा पर तनाव के बीच उस बैकअप रिजर्व फोर्स को वापस बुला लिया गया है, जिन्हें नक्सलियों के खात्मे के लिए तैनात किया गया था । लेकिन कर्रेगुट्टा की खामोश चोटी अब एक गूंज बन चुकी है – उस गूंज की जो कहती है, “अंधेरा ज्यादा दिन नहीं टिकता, सूरज को आना ही होता है।” सुरक्षाबलों की इस पूरी कार्रवाई पर आपका क्या कहना है, अपनी राय भी जरूर कमेंट करें ।