जब ”अजय” से ”योगी” बने बेटे को देखकर फट गया था माँ का कलेजा,इस तरह युवा सन्यासी बने थे योगी आदित्यनाथ
योगी आदित्यनाथ

नमस्कार दोस्तों, हमारे चैनल में आपका बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों आज हम आपको उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जुड़ा हुआ एक बड़ा किस्सा बताने जा रहे हैं, जैसा कि बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि योगी आदित्यनाथ का बचपन से ही यह नाम नहीं था उन्हें बचपन में अजय सिंह बिष्ट के नाम से जाना जाता था, उनका भी एक आम जनमानस की तरह खुद का घर, बार था जिसमें वो, उनकी बहन उनके माँ-बाप सब एक साथ रहते थे, योगी बनने से पहले अजय ने साल 1989 में ऋषिकेश के भरत मंदिर इंटरमीडिएट कॉलेज से इंटर की पढ़ाई पूरी की।। इसी साल पौड़ी के कोटद्वार के डॉ. पीताम्बर दयाल बड़थ्याल हिमालयन राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में Bsc में एडमिशन ले लिया। 1992 में यहां से भी पास हो गए। गोरखपुर यूनिवर्सिटी में फिजिक्स से Msc में एडमिशन लिया पर पूरा नहीं किया और एक दिन अचानक घर से चले गए।
महीने तक घर वालों को पता ही नहीं चला कि अजय कहां हैं? पिता आनंद सिंह हर उस जगह खोजने गए, जहां अजय के होने की संभावना थी, लेकिन वो नहीं मिले। फिर किसी ने बताया कि उनका बेटा गोरखपुर के गोरक्षनाथ पीठ में है। अब वह संन्यासी बन चुका है। आनंद सिंह को बहुत दुख हुआ, लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सके। संन्यासी बनने के बाद अजय अब योगी आदित्यनाथ बन गए थे। 1993 में अपने गांव पंचूर आए। पहले की तरह जींस पैंट में नहीं, बल्कि गेरुआ पहनकर। सिर घुटा कर, दोनों कानों में बड़े-बड़े कुंडल और हाथ में खप्पर लेकर। जिसने भी देखा उसने योगी को पहचानने के लिए अपनी आंखें मलीं। इसलिए कि, एक बार में वह पहचान ही नहीं पाया कि यह अजय सिंह बिष्ट हैं।
अजय घर के बाहर पहुंचे और भिक्षा के लिए आवाज लगाई। घर की मालकिन आवाज सुनकर दरवाजे पर आईं तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। जहां थीं, वहीं स्थिर हो गईं। आंखों से आंसुओं की धार बह निकली। जो सत्य साक्षात सामने खड़ा था उसे देखते हुए भी यकीन नहीं हो पा रहा था। मां मौन थीं, तभी आदित्यनाथ ने कहा, ‘मां भिक्षा दीजिए’। मां ने खुद को संभाला और कहा, ‘बेटा यह क्या हाल बना रखा है, घर में क्या कमी थी जो भीख मांग रहा है?’ योगी ने कहा, ‘मां संन्यास मेरा धर्म है। एक योगी की भूख भिक्षा से ही मिटेगी। आप भिक्षा में जो कुछ देंगी वही मेरे मनोरथ को पूरा करेगा।’
मां को बेटे के इस रूप पर अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उन्होंने कहा, ‘बेटा तुम पहले घर के अंदर आओ।’आदित्यनाथ ने मना कर दिया और कहा, ‘नहीं मां, मैं बिना भिक्षा लिए न तो घर के अंदर आ सकता हूं और न ही यहां से जा सकता हूं। जो कुछ भी हो वह मुझे दीजिए। इसके बाद ही मैं यहां से जाऊंगा।’
मां बेटे की जिद के आगे हार गईं। घर के अंदर गईं और थोड़े चावल और पैसे लाकर आदित्यनाथ के पात्र में डाल दिए। भिक्षा पाने के बाद आदित्यनाथ पीछे मुड़े और वापस चल दिए। आंखों में आंसू लिए मां घर के दरवाजे पर खड़े होकर अपने बेटे को जाते हुए देखती रहीं।योगी आदित्यनाथ संन्यासी बन गए। पिता आनंद सिंह आए। अपने बेटे को इस रूप में देखकर रो पड़े। कहने लगे बेटा लौट चलो हमारे साथ, लेकिन योगी नहीं गए। पिता निराश होकर लौट गए। उन्हें शायद उम्मीद थी कि वह बेटे को अपने घर वापस ले आएंगे, इसलिए वह अबकी बार अपनी पत्नी सावित्री के साथ गोरखपुर पहुंचे।
योगी आदित्यनाथ को देखते ही मां रो पड़ी। उस वक्त महाराज अवैद्यनाथ मंदिर में ही थे। सावित्री ने कहा, ‘महंत जी मेरे बेटे को लौटा दीजिए।’ महाराज ने कहा, ‘चार बेटे हैं तुम्हारे, एक बेटा हमें दे दो।’ सावित्री देवी को इसके बाद कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। कभी महाराज को देखतीं, कभी अपने बेटे को तो कभी छत की तरफ। आंखों के आंसू सूख गए थे। फिर वह कुछ नहीं बोलीं, अपने पति की तरफ देखा और बाहर चली गईं।1998 में योगी आदित्यनाथ सांसद बन गए। परिवार के लोग मिलने आए। सभी खुश थे। पिता आनंद सिंह और मां सावित्री भी। तो दोस्तों एक कठिन तपस्या के बाद योगी आदित्यनाथ ने आज यह मुकाम पाया है उनके इस तप को, अपने परिवार के त्याग को आप कितना बड़ा मानते हैं।