फिर 5 साल के लिए बीजेपी के अच्छे दिन , मोदी ने दोहराया इंदिरा का इतिहास
इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी ऐसे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने दम पर चुनाव लड़ा और लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. भारतीय मतदाताओं ने स्थिरता और निरंतरता को चुना है, इससे भी बढ़कर नरेंद्र मोदी को इस बार भले ही मोदी लहर अदृश्य थी लेकिन हिन्दी हार्टलैंड, पूरब, पश्चिम और दक्षिण में इसका असर दिख रहा है.
इस चुनाव ने साबित कर दिया है कि फिलहाल नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाला कोई नहीं है.
जियो-पॉलिटिक्स, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से इस चुनाव के परिणाम दूरगामी होंगे. शिक्षा, मीडिया और कॉर्पोरेट जगत में इसे महसूस किया जाएगा. यह लेफ्ट से राइट तक पूरी राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करेगा.
चुनाव के नतीजे क्या होंगे मोदी इसे लेकर मतदान से पहले ही कॉन्फिडेंट थे, जब उन्होंने अपने सलाहकारों के साथ ‘पहले 100 दिन’ की योजना बनाई और विदेशी दौरों के कार्यक्रमों को हरी झंडी दी.
आगे मोदी के सामने जियो-स्ट्रेटिजिक संबंध, कृषि संकट एवं वैश्विक आर्थिक मंदी के तौर पर तीन बड़ी चुनौतियां हैं और वो इसे जानते हैं, लेकिन वह यह भी जानते हैं कि लड़ाई खत्म हो चुकी है और इन समस्याओं से लड़ने के लिए उनके पास फ्री हैंड है.
उम्मीद है कि नई सरकार के हनीमून परियड में अर्थव्यवस्था की वृद्धि को दोहरे अंक तक पहुंचाने के लिए व्यापक निर्णय लिए जाएंगे. कमजोर विपक्ष के पास सरकार के साथ चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. आरएसएस के पास भी अब अपनी योजना को आगे बढ़ाने का अवसर है. इसके साथ ही मोदी सरकार का अर्थ ये भी है कि बीजेपी और सरकार के बीच में घनिष्ट संबंध.इस ‘युद्ध’ में मोदी के सारथी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी प्रशंसा के पात्र हैं. उन्होंने पूर्व में नए राज्यों में पैठ बनाने का वादा किया और उसे निभाया भी, इसके साथ ही उन्होंने बताया कि क्यों उन्हें चुनावों का माहिर माना जाता है. शाह की चुनावी मशीनरी ने 120 सीमावर्ती सीटों को लक्षित किया और उन्हें लक्ष्यों में परिवर्तित किया.
अमित शाह ने गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ा और इस पर जीत भी दर्ज की. वह यूनियन केबिनेट के लिए योग्य नेता नजर आते हैं, हालांकि बीजेपी में उनके आलोचक उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री देखना अधिक पसंद कर सकते हैं.
‘झटका और शोक’ क्षेत्रीय पार्टियों पर चुनाव के नतीजों के प्रभाव को इन शब्दों से ही बयां किया जा सकता है. यहां तक कि यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन भी बीजेपी को नहीं हरा सका. ममता बनर्जी की TMC और नवीन पटनायक की BJD ने मोदी लहर में खुद को डूबने से बचा लिया, लेकिन मुश्किल से.
बीजेपी को जिताने वाली रहस्यमयी ताकत क्या थी? बीजेपी महासचिव ने कहा, “अंकगणित मत देखिए, केमिस्ट्री देखिए.” उन्होंने कहा कि आम आदमी से मोदी का जुड़ाव आइडेंटी पॉलिटिक्स को समाहित कर लेगा.
पुलवामा हमला, स्थिरता का वादा, विपक्ष का एकसाथ काम करने में असफल होना, कांग्रेस को विफल रणनीतियों पर जोर देने की जिद- इनमें से किसी बात से पता नहीं चलता कि मोदी लहर कैसे प्रकट हुई.
अगर कांग्रेस में कोई हीरो होता तो वह कैप्टन अमरिंदर सिंह होते, जिन्होंने पंजाब को सहजता से आगे बढ़ाया.
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने निराश किया है. अब तो कर्नाटक और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार पर खतरा नजर आने लगा है.
जवाहरलाल नेहरू ने जनसंघ के संस्थापक को धमकाते हुए कहा था, ‘मैं तुम्हे कुचल दूंगा’. इसके जवाब में मुखर्जी ने कहा था, ‘मैं इस कुचली हुई मानसिकता को कुचल दूंगा.’ कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया है.
अब कांग्रेस को चाहिए कि वह आने वाले सालों में संस्थानों पर भरोसा करे और चेक एवं बैलेंस को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़े.