संपादकीय

न डर, ना संकोच कर, युवा है, प्रश्न खड़ा कर – बिस्सा

देश की अर्थ व्यवस्था टूट रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है। अफसरशाही सर चढ़ कर बोल रही। युवाओं जागोगे की सोये रहोगे, अब यह निर्णय लेने का वक्त आ गया है। राजसत्ता आपको चुनौती दे रही है। भय, आतंक, नफरत के वातावरण में फंसा कर आपको लूट रही है। क्या अब भी प्रश्न नहीं करोगे। मेरी मानों प्रश्न खड़ा करो।

युवाओं का काम समर्थन नहीं बल्कि संकल्पित होना है। युवाओं का काम सिर्फ सुनना नहीं, साकार करना है। युवाओं का काम देखना नहीं, अभिव्यक्ति देना है। युवा अर्थात वायु उसे अपना वेग बनाए रखना है।

 युवाओं से निवेदन है विचारों के आगमन की चारों दिशाएं खोले रखिए वरना आप अवसरवाद की फैक्ट्री में उपजे विचारों के कैरी एंड फॉरवार्डिंग एजेंट होकर रह जाएंगे। जब तक आप सत्य से अवगत होंगे, तब तक अपने व अपनों के हाथ जला चुके होंगे।

शोषण का द्वार मत खुले रहने दीजिये। अपनी आंखें खोले रखिये। दूसरे की बातों को सुनने, देखने और समझने की आदत डालिये। आपको जो पसंद है अगर वही सुनना व देखना चाहते हैं तो जान लीजिये आप चिंतन-मनन से कोसों दूर हो होते जा रहे हैं। सोचिये यह स्थिति कितनी खतरनाक है। यहीं से शोषण का द्वार खुलता है।

आप कहीं अवसरवादियों के चंगुल में तो नहीं फंस चुके हैं. इसका जरूर आकलन कीजिएगा। इसके लिये इन पांच बिंदुओं पर जरुर चिंतन कीजिये –

1 क्या आप आरोप लगाकर मूल विषय से बचने का प्रयास करने लगते हैं ?

2 क्या आप जिस राजनेता के समर्थक हैं उस पर उठ रहे प्रश्नों के बचाव में एक नया प्रश्न या आरोप खड़ा करने का प्रयास करते हैं।

3 क्या आप की विचारधारा के विपरीत भेजे गए फोटो टिप्पणी वीडियो इत्यादी देखकर आप परेशान हो जाते हैं।

4 क्या आप दूसरे की बात इसलिए नहीं सुनना चाहते क्योंकि आपके मन में भय रहता है कहीं आपने जो विचार बना रखें हैं, उसे खो ना दें।

5 क्या आप नफरत की भावना के कारण दूसरे को बदनाम करने या मजाक उड़ाने में लगे रहते हैं ?

अगर आपका उत्तर हां में है तो समझ जाइए, आप के ऊपर वैचारिक प्रहार हो चुका है। अवसरवादी लोगों ने आपके दिमाग पर कब्जा जमा लिया है। आप उनके स्वार्थ सिद्धि की मशीन बन चुके हैं।

इससे बाहर निकलने का एकमात्र उपाय है प्रश्न खड़ा करना। आप एक बार व्यवस्था से प्रश्न करना तो शुरू करिए फिर देखिए कैसे सार्थक परिणाम आता है। नफरत घृणा सांप्रदायिकता जातिवाद जैसी तमाम विसंगतियां फैलाने वाले अवसरवादी तत्व अब आपकी बात करने लगेंगे उनकी प्राथमिकताएं शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार उद्योग धंधे इत्यादि हो जाऐंगी।

एक बात अच्छे से कंठस्थ कर लीजिए युवा जागृति का द्वार है अगर वह अपने दरवाजे खुले रखेगा तो जागृति फैलेगी और दरवाजे बंद रखेगा तो स्वयं के साथ साथ संपूर्ण समाज को अंधकार में डाल देगा।

 

राजेश बिस्सा

लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं।

 

 

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