जगदलपुर : छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में कल देर शाम नक्सलियों द्वारा बिछाए गए प्रेशर बम विस्फोट में डीआरजी का एक जवान देवनाथ गंभीर रूप से जख्मी हो गया, जिसके चेहरे पर गंभीर चोटें आयी हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार चिंतागुफा थाने से पुलिस का संयुक्त बल गश्त सर्चिंग के लिए रवाना किया गया था। लौटते वक्त देर शाम को थाने से महज 500 मीटर की दूरी पर ही नक्सलियों द्वारा बिछाए गए पे्रशर बम में पैर पडऩे पर विस्फोट हो गया। धमाके में डीआरजी का जवान देवनाथ गंभीर रूप से जख्मी हो गया है। देवनाथ को चिंतागुफा प्राथमिक केन्द्र में उपचार के बाद आज सुबह बेहतर इलाज के लिए हेलीकाप्टर से रायपुर रेफर किया गया है।
जगदलपुर : मीठे जल के स्रोत हाथी दरहा का कब होगा संरक्षण
जगदलपुर : बस्तर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर स्थित हाथी खोदरा स्थल है, जहां 400 साल पुरानी किवदंति पर भरोसा करने वाले लोग कहते हैं कि प्राकृतिक पहाड़ी में हाथी के सूंड से मिलने वाले मीठे जल को आज भी पी रहे हैं। इसके स्त्रोत के साथ हुई छेड़छाड़ के बावजूद इस जगह के संरक्षण को लेकर न तो कोई पहल हुई और न ही संबंधित विभाग इस ओर चिंतित नजर आ रहा है।
बस्तर ब्लॉक मुख्यालय के निवासी 83 वर्षीय खतकुड़ी बघेल ने बताया कि यह किस्सा उन्होंने अपने दादा-परदादा से सुना था। तब की कहानी कुछ यूं थी कि महाराजा कोमलदेव का एक हाथी भटकते हुए जंगल में पहुंच गया, जिसे ग्रामीणों ने अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद 40 फीट गहरे गड्ढे में उसे छिपाकर रखा और कुछ समय के बाद हाथी पत्थर में तब्दील हो गया। इसी पत्थर के हाथी की सूंड से निकलने वाला मीठा जल वहां से गुजरने वाले राहगीर प्यास बुझाने के लिए उपयोग करने लगे। चूंकि इस गड्ढे के पास ही एक आकर्षक शिवलिंग भी है, लिहाजा सैर-सपाटे के लिए पहुंचने वाले लोगों ने यहां पूजा-पाठ आरंभ कर दिया और देखते ही देखते स्थल की ख्याति फैल गई। 400 साल पुराने इतिहास से छेड़छाड़ हुई और जंगल अमले के लोगों ने यहां एक सूचना का बोर्ड लगा दिया और अपने दायित्वों को समाप्त मान लिया। बोर्ड में लिखा है इस जगह की किसी भी चीज से छेड़छाड़ करने वालों के विरूद्ध एक लाख रुपए का जुर्माना वसूला जाएगा, लेकिन हकीकत यह है कि इस जगह के बिगड़ रहे स्वरूप से किसी का कोई लेना-देना नहीं है।
शिवलिंग के पुजारी वासु गायता कहते हैं कि पत्थर में तब्दील हुआ हाथी किसी राजा का नहींए वरन साक्षात भगवान विष्णु का ऐरावत है। कार्य विशेष से सदियों पहले धरती पर आए ऐरावत का काज पूरा होने के बाद उसने देह त्यागी और लौटने से पहले लोगों के आग्रह पर उसने निशानी स्वरूप खुद की देह को पत्थर में तब्दील कर दिया।
बहरहाल चाहे ग्रामीणों की बातें कपोल कल्पित हों, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि आस्था और विज्ञान के आगे हमेशा विज्ञान बौना साबित हुआ है। ऐसे में हाथी खोदरा स्थल के लोगों की आस्था को ठेस न पहुंचे, इसलिए संबंधित विभागों को इस ओर ध्यान देकर स्थल के संरक्षण की दिशा में पर्याप्त पहल करनी चाहिए।
पुरातत्व विभाग के संग्रहाध्यक्ष अमृत लाल पैकरा ने इस संबंध में कहा कि हाथी खोदरा के सूंड से जो पानी निकल रहा है, वह प्राकृतिक जल स्रोत है, इसमें कोई पुरातत्व के अवशेष नहीं मिले हैं।पीजी कॉलेज के प्राध्यापक भूजल वैज्ञानिक अमितांशु झा ने कहा हाथी खोदरा में 12 महीने पानी निकलता है, इससे ऐसा लगता है कि उस स्थान पर भूजल स्तर ऊपर है या फि र चट्टान में दरार होने पर जमीन से पानी निकलता रहता है।
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