योगी के गढ़ में कांग्रेस ने खेला ब्राह्मण दांव
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए गोरखपुर सीट से अपने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया है. बीजेपी के गढ़ कहे जाने वाले गोरखपुर में वापसी की राह देख रही कांग्रेस ने एक बार फिर यहां पर ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेला है. कांग्रेस ने यहां से मधुसुदन तिवारी को टिकट दिया है. मधुसूदन तिवारी का मुकाबला यहां पर बीजेपी के ब्राह्मण प्रत्याशी रवि किशन शुक्ला और सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार रामभुआल निषाद से है.
पेशे से वकील मधुसूदन तिवारी उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य हैं. उनके कंधे पर पूर्वांचल की इस महत्वपूर्ण सीट पर एक बार फिर कांग्रेस की वापसी कराने की जिम्मेदारी है. कांग्रेस इससे पहले जब आखिरी बार गोरखपुर सीट जीती थी तब ब्राह्मण उम्मीदवार मदन पांडे ने जीत हासिल की थी. मदन पांडे 1984 के चुनाव में इस सीट से जीत हासिल करने वाले आखिरी कांग्रेसी थे.
मधुसूदन के सामने चौथे स्थान से ऊपर लाना चुनौती
पिछले कुछ चुनावी नतीजों को देखें तो मधुसूदन तिवारी के सामने कांग्रेस को यहां पर चौथे स्थान से ऊपर लाने की चुनौती होगी. क्योंकि 2004, 2009 और 2014 के चुनाव में पार्टी हर बार चौथे स्थान पर ही रही है. इनमें से दो चुनावों में तो उसका ब्राह्मण दांव भी फेल रहा था.
ऐसे में इस बार देखने वाली बात होगी कि मधुसूदन तिवारी क्या कमाल कर सकते हैं, वो बीजेपी के ब्राह्मण प्रत्याशी रवि किशन शुक्ला का खेल बिगाड़ते हैं या फिर सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी रामभुआल निषाद की राह रोकते हैं.
किसके साथ जाएंगे ब्राह्मण वोटर्स
गोरखपुर में 2 लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. यहां के ब्राह्मण मतदाता आमतौर पर बीजेपी को अपनी पसंद मानते हैं. ब्राह्मण वोटबैंक को देखते हुए ही बीजेपी ने 2018 के उपचुनाव में उपेंद्र शुक्ला को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उसका दांव फेल हो गया था और सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले प्रवीण निषाद ने जीत हासिल की. हालांकि प्रवीण निषाद अब बीजेपी में हैं और संतकबीरनगर से बीजेपी के प्रत्याशी हैं.
गोरखपुर लोकसभा सीट को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ कहा जाता है. 2018 के उपचुनाव को छोड़ दें तो बीते 21 साल में ये पहला चुनाव है जब योगी आदित्यनाथ उम्मीदवार नहीं हैं. 1998 में पहली बार यहां से जीतने के बाद यहां पर सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्यनाथ का ही जादू चला है. योगी आदित्यनाथ की इस जीत में ब्राह्मण मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई. ऐसे में इस बार देखने वाले बात ये होगी कि ब्राह्मण मतदाता किसके साथ जाते हैं. क्या वे बीजेपी के साथ बने रहेंगे या कांग्रेस को राहत की खबर पहुंचाएंगे.
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