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 नईदिल्ली : सुको ने बढ़ाई 5 एक्टिविस्ट की नजऱबंदी

नई दिल्ली : भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नक्सल कनेक्शन के आरोपों में नजरबंद ऐक्टिविस्ट्स को सुप्रीम कोर्ट से करारा झटका लगा है। कोर्ट ने साफ कहा है कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं हुई हैं। कोर्ट ने एसआईटी जांच की मांग खारिज करते हुए ऐक्टिविस्ट्स की हिरासत 4 हफ्ते और बढ़ा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस को आगे जांच जारी रखने को भी कहा है। आपको बता दें कि पांच ऐक्टविस्ट्स- वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनान गोन्साल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को पहले गिरफ्तार और फिर नजरबंद रखा गया है। अब इनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है।

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2-1 के बहुमत से दिए फैसले में जस्टिस खानविलकर ने कहा कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं हुई हैं बल्कि पहली नजर में ऐसे साक्ष्य हैं जिनसे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के साथ उनके संबंधों का पता चलता है।

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जस्टिस खानविलकर ने आगे कहा कि आरोपी को यह चुनने का अधिकार नहीं है कि मामले की जांच कौन सी जांच एजेंसी करे। उन्होंने एसआईटी से साफ मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए ऐक्टिविस्ट चाहें तो राहत के लिए ट्रायल कोर्ट जा सकते हैं। इससे पहले ऐक्टिविस्ट्स की तरफ से दाखिल अर्जी में इस मामले को मनगढ़ंत बताते हुए एसआईटी जांच की मांग की गई थी।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने पुलिस पर उठाए सवाल

उधर, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस चंद्रचूड़ का फैसला अलग रहा। उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस के छानबीन के तरीके पर सवाल उठाए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि पांच आरोपियों की गिरफ्तारी राज्य द्वारा उनकी आवाज को दबाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि पुलिस ने जिस तरह से लेटर को लीक किया और दस्तावेज दिखाए, उससे महाराष्ट्र पुलिस की ऐक्टिविटी सवालों के घेरे में है।

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पुलिस ने पब्लिक ऑपिनियन बनाने की कोशिश की। इस मामले में एसआईटी जांच की जरूरत है। हालांकि उनका फैसला अल्पमत में रहा।
आपको बता दें कि भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर महाराष्ट्र पुलिस ने पांच लोगों को नक्सल लिंक के आरोप में 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था। उसके बाद ये ऐक्टिविस्ट्स नजरबंद हैं।

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