
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक नया अध्याय खुल चुका है, एक वक्त छत्तीसगढ़ की सत्ता पूर्व सीएम और मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष रमन सिंह, पूर्व नेता और वर्तमान विधायक धरमलाल कौशिक, बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेताओं के ईर्द गिर्द घूमा करती थी, लेकिन वक्त कभी एक जैसे नहीं रहता, वो बदलता ही है और यही प्रकृति का नियम हैं, करीब पंद्रह साल तक सत्ता के सहयोगी के रूप में काम करने वाले सीनियर विधायक आज अपनी ही सरकार को विधानसभा में घेर कर विपक्ष का काम करते हुए दिखाई देते हैं । यह घटनाक्रम सत्ता संरचना में व्याप्त अदृश्य पीड़ा की ओर भी संकेत करता है, जो शायद सीनियर विधायकों को भीतर ही भीतर परेशान कर रही है ।
मंत्रिमंडल गठन और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी….
13 दिसंबर 2023 को विष्णु देव साय ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद, 22 दिसंबर को नौ नए मंत्रियों को शामिल किया गया, जिनमें कई नए चेहरे थे। इस प्रक्रिया में कई वरिष्ठ विधायकों और पूर्व मंत्रियों को नजरअंदाज कर दिया गया। इससे सामने से न सही पर, अंदरूनी असंतोष भी नजर आता है । जानकार मानते हैं कि वरिष्ठ विधायकों को लगता है कि उनके अनुभव और समर्पण के बावजूद उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई , जो उनके लिए एक गहरी पीड़ा का कारण बना।
वरिष्ठता नजर अंदाज ?
वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, और राजेश मूणत जैसे नेता बाहर भले ही पार्टी का खुलेतौर पर समर्थन करते हैं, लेकिन सदन में आते ही उनके तेवर तीखे हो जाते हैं, वे अपनी ही सरकार को घेरने और भ्रष्टाचार तक के आरोप लगाते नजर आते हैं । धरमलाल कौशिक, जो बिल्हा क्षेत्र से विधायक हैं और पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं, उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया था।
अजय चंद्राकर, जो पूर्व में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं, और राजेश मूणत, जो रायपुर पश्चिम से विधायक हैं और मंत्री भी रह चुके हैं, जबकि पूर्व कैबिनेट मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को तो सांसद बनाकर छत्तीसगढ़ की विधानसभा से ही अलग कर दिया गया ।
अदृश्य पीड़ा और आंतरिक संघर्ष…..
राजनीति में पद और प्रतिष्ठा का विशेष महत्व होता है। जब वरिष्ठ नेताओं को उनके अपेक्षित स्थान से वंचित किया जाता है, तो यह उनके मनोबल पर गहरा असर डालता है। यह अदृश्य पीड़ा धीरे-धीरे आंतरिक संघर्ष का रूप भी ले लेती है, जो अब विधानसभा में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। वरिष्ठ विधायक अपने ही मंत्रियों की कार्यशैली और निर्णयों पर सवाल उठा रहे हैं, जिससे सरकार की छवि प्रभावित हो रही है ।
भाजपा के लिए चुनौतियां……
फिलहाल भाजपा को किसी की नाराजगी से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि निकाय चुनावों में भी उसे बड़ी जीत हासिल हुई है, लेकिन अगले विधानसभा चुनावों में अगर भाजपा कमजोर प्रदर्शन करती है, तो ये बात तय ही कि इसका ठिकरा सीनियर विधायक मौजूदा सरकार पर फोड़ सकते हैं. लिहाजा भाजपा के संगठन को सत्ता में शामिल नए चेहरे और सीनियर विधायकों को लेकर एक मजबूत रणनीति के साथ आगे, बढ़ना किसी चुनौती से कम नहीं होगा ।
छत्तीसगढ़ में भाजपा की वर्तमान स्थिति एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि वह अपने वरिष्ठ नेताओं की भावनाओं का सम्मान करे और उन्हें उचित स्थान दे। अन्यथा, यह आंतरिक कलह पार्टी की नींव को कमजोर कर सकती है, जिसका सीधा लाभ विपक्ष को मिलेगा।