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संविधान खतरे में है, लोकतंत्र पर हमला हो रहा है: भूपेश बघेल का तीखा वार

रायपुर। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बार फिर भारतीय राजनीति की सियासी गर्मी को तीखा बना दिया है। बालोद में आयोजित ‘संविधान बचाओ’ रैली में बघेल का स्वर तल्ख था और निशाना सीधा केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर। उन्होंने चुनाव आयोग को “भाजपा का बंधुआ मजदूर” तक कह डाला।

भाजपा पर संस्थाओं को कमजोर करने का आरोप

बघेल का आरोप था कि मौजूदा सरकार ने संविधान की आत्मा को ही चोट पहुंचाई है। उन्होंने कहा, “संविधान ने हमें अधिकार दिए, हमें ताकत दी, लेकिन आज वही संविधान खतरे में है।”
उनका दावा है कि लोकतंत्र की रक्षा करने वाली संस्थाएं—चाहे वह चुनाव आयोग हो या न्यायपालिका, आज दबाव में हैं और भाजपा का पक्ष लेने लगी हैं।

“वोटर कम, वोट ज्यादा!” – ईवीएम पर उठाया सवाल

ईवीएम की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए बघेल ने दावा किया कि कई लोकसभा सीटों पर मतदाताओं से ज्यादा वोट पड़े, और इसकी पुष्टि चुनाव आयोग की वेबसाइट से भी होती है।
“शिकायतों के बावजूद जांच नहीं होती। क्यों? क्या चुनाव आयोग अब सिर्फ सत्ताधारी पार्टी की सेवा में है?” – बघेल ने तीखे सवाल दागे।

“पहलगाम और झीरम – नाम बदले, दर्द वही”

बघेल ने हालिया पहलगाम आतंकी हमले को 2013 के झीरम घाटी नक्सली हमले से जोड़ते हुए कहा कि दोनों घटनाओं में एक चीज समान थी – सुरक्षा में भारी चूक।
“पहलगाम में धर्म पूछकर मारा गया, झीरम में नाम पूछकर। 12 साल बाद भी न झीरम के दोषी सामने आए, न आज के हमलावर।”

सीजफायर पर अमेरिका की भूमिका पर भड़के

मोदी सरकार पर विदेश नीति को लेकर भी हमला करते हुए बघेल ने पूछा – “अमेरिका के राष्ट्रपति को भारत में सीजफायर का आदेश देने का अधिकार किसने दिया?”
उन्होंने हाल की घटनाओं को अमेरिकी दबाव में लिया गया फैसला बताया और इसे राष्ट्रीय सम्मान के खिलाफ करार दिया।

“मोदी सिर्फ भाजपा के नहीं, देश के प्रधानमंत्री हैं”

भूपेश बघेल ने कहा कि उनके वैचारिक मतभेद जरूर हैं, लेकिन जब भारत की गरिमा दांव पर हो, तब प्रधानमंत्री की चुप्पी निंदनीय है।
“जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को धमकाते हैं, और हमारे प्रधानमंत्री खामोश रहते हैं – तब सवाल उठता है: क्या यह राष्ट्रहित है?”

निष्कर्ष:

भूपेश बघेल की यह रैली केवल एक राजनीतिक सभा नहीं, बल्कि सत्ता के खिलाफ खुला आरोप-पत्र थी। सवाल कई हैं – जवाब आने बाकी हैं।
क्या ये आवाज़ देश के लोकतंत्र की रक्षा की पुकार है, या चुनावी समर की एक और चाल? फैसला जनता करेगी।

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