
रायपुर। तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीमा पर फैली वीरान और भयावह कर्रेगुट्टा पहाड़ी—एक ऐसा इलाका जिसे अब तक नक्सलियों का अभेद्य गढ़ माना जाता था। लेकिन 29 अप्रैल की तपती दोपहर, कुछ ऐसा हुआ जिसने इस पहाड़ी को सुर्खियों में ला दिया।
आकाश में गूंजते हेलीकॉप्टर की आवाज और उसके बाद 500 जवानों की कर्रेगुट्टा पर उतरने की खबर जंगल में आग की तरह फैली। सोशल मीडिया पर एक तस्वीर सामने आई—जवान, हथियारों से लैस, इस खतरनाक पहाड़ी पर डटे हुए। पर रहस्य की परत यहीं से शुरू होती है—क्योंकि अब तक फोर्स की ओर से इस पहाड़ी पर कब्जा लेने की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
कर्रेगुट्टा… जहां नक्सली नेताओं की परछाइयाँ मंडराती थीं, जहां हर पत्थर के नीचे एक जाल और हर झाड़ी के पीछे खतरा छिपा होता था। इसी इलाके में पिछले 8 दिनों से एक गुप्त और बेहद बड़ा ऑपरेशन चल रहा है। गर्मी की तपिश ने जवानों को झुलसा दिया—कई डिहाइड्रेशन के शिकार हुए, दो आईईडी धमाकों में घायल हुए। फिर भी, इस छाया-युद्ध में जवानों ने नक्सलियों को खदेड़ दिया, तीन महिला नक्सली मारी गईं, और पहाड़ी की चोटी अब सेना की निगरानी में है… शायद।
पर सवाल यह है—अगर कब्जा हो गया है तो आधिकारिक पुष्टि क्यों नहीं? क्या कोई रणनीतिक वजह है या फिर ये सिर्फ शुरुआत है किसी और बड़े मिशन की?
इधर, तेलंगाना शांतिवार्ता समिति ने राज्य के मुख्यमंत्री से मिलकर इस अभियान को रोकने की गुहार लगाई है। दावा है कि हिड़मा, नक्सलियों का सबसे बड़ा मास्टरमाइंड, घेराबंदी को चकमा देकर भाग चुका है।
कर्रेगुट्टा की चुप्पी, रहस्यों से भरी ये पहाड़ी… अब भी बहुत कुछ कहती है, मगर फुसफुसाहटों में। क्या ये ऑपरेशन नक्सलवाद की रीढ़ तोड़ देगा, या सिर्फ एक अध्याय है एक लंबे युद्ध का? क्या आप जानना चाहेंगे कि कर्रेगुट्टा से जुड़ा अगला रहस्य क्या हो सकता है।