
गोधरा कांड: एक घटना जिसने भारत की राजनीति को झकझोर दिया
27 फरवरी 2002 गोधरा, गुजरात। सुबह के लगभग 7:43 बजे, साबरमती एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से करीब 4 घंटे देरी से गोधरा स्टेशन पहुँची। इस ट्रेन में बड़ी संख्या में कारसेवक सवार थे, जो अयोध्या से कारसेवा कर लौट रहे थे। ट्रेन के कोच S सिक्स में अचानक आग लग गई। 59 निर्दोष लोग, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे, जलकर मर गए। देखते ही देखते यह एक राजनीतिक और सांप्रदायिक मुद्दा बन गया।
गुजरात सरकार ने बताया भयावह षडयंत्र….
गोधरा की घटना को शुरुआत में ‘साजिश’ बताया गया। गुजरात सरकार ने इसे हिंदुओं के ख़िलाफ़ पूर्व नियोजित हमला करार दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “एक भयावह षड्यंत्र” कहा। 2008 में नानावटी आयोग ने भी इसे साजिश बताया और 2011 में एक अदालत ने 31 लोगों को दोषी ठहराया। इस घटना के तुरंत बाद गुजरात में भयानक दंगे भड़क उठे। हिंदू संगठनों और कट्टरपंथी समूहों ने इसे मुसलमानों के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई में बदल दिया। करीब 1000 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर मुसलमान थे। सवाल उठे कि क्या सरकार ने दंगों को रोकने में ढिलाई बरती? 2012 में SIT ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी ।
मोदी एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे…
गोधरा और गुजरात दंगे, जो मोदी के राजनीतिक करियर के लिए एक बड़ा संकट हो सकते थे, उन्होंने उसे अवसर में बदल दिया। बीजेपी और संघ परिवार ने गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों को एक “हिंदू उत्पीड़न” की तरह प्रस्तुत किया। इससे मोदी की लोकप्रियता बढ़ी, और वह हिंदू राष्ट्रवाद का चेहरा बन गए।
विधानसभा भंग की और मिली बड़ी जीत…
गोधरा कांड और दंगों के बाद, नरेंद्र मोदी ने गुजरात विधानसभा भंग कर दी और 2002 में नए चुनाव कराए। उन्होंने प्रचार में “हम पांच, हमारे पच्चीस” जैसे हिंदुत्व-आधारित नारों का इस्तेमाल किया, जिससे ध्रुवीकरण की राजनीति मजबूत हुई। दिसंबर 2002 में भाजपा को बड़ी जीत मिली, और मोदी दोबारा मुख्यमंत्री बने। 2014 में वे प्रधानमंत्री बने और 2019 में और भी बड़ी जीत हासिल की।
गोधरा कांड एक ऐसी त्रासदी थी, जिसका असर भारत की राजनीति पर गहरा पड़ा। यह सिर्फ़ एक ट्रेन दुर्घटना नहीं थी, बल्कि इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हुआ और नरेंद्र मोदी का एक हिंदू नेता से राष्ट्रीय नेता बनने का सफर शुरू हुआ। इस पूरी त्रासदी को छिपाने की कोशिशें भी हुईं, और भुनाने की कोशिशें भी लगातार चलती रहीं । इतिहास इसे किस रूप में याद रखेगा, यह भविष्य तय करेगा। लेकिन 27 फरवरी ही वो दिन रहा, जिसके बाद से मोदी निरंतर राजनीतिक ऊंचाइंयो को एक के बाद एक छूते चले गए ।