जगदलपुर : दवाई के नाम चमगादड़ों को मारकर हो रही तस्करी
जगदलपुर : दवाई के नाम पर चमगीदड़ों को मार कर अवैध रूप से लाकर यहां चोरी छिपे विक्रय करने का सिलसिला इन दिनों अत्यधिक तेजी से चल रहा है और इन चमगीदड़ों के मृत शरीर को बेच कर आय प्राप्त कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार चमगीदड़ों को निशाना बनाने की घटनाएं चित्रकोट क्षेत्र में अधिक हो रही हैं। पुलिस थाना लोहंडीगुड़ा में क्षेत्र के ग्रामीणों ने इस आशय की शिकायत की है।
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नगर के किनारे स्थित वार्डों के और ग्रामीण क्षेत्रों के युवकों का समुह गूलेल ले कर चित्रकोट जलप्रपात के पास जाता है और वहां पर लगे हुए अर्जुन आदि वृक्षों पर आराम करते हुए चमगीदड़ों को गूलेल से निशाना बना कर मारता है। चमगीदड़ों के मृत शरीर को शहर ला कर कैंसर, टीवी सहित कई बीमारियों के लिए इन चमगीदड़ों के मृत शरीर का मांस भक्षण बीमार को कराये जाने से बीमारी की समाप्ती होती है कह कर बेचा जाता है।
इससे चित्रकोट स्थित पर्यावरण के लिए आवश्यक चमगीदड़ अपनी जान गंवा रहे हैं। इस संबंध में स्थानीय आयूर्वेद विशेषज्ञ ने बताया कि यह लोगों का भ्रम है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता है। विशेषज्ञ ने यह भी कहा की मरीज को मांस भक्षण से परेशानी उठानी पड़ सकती है।
2) जगदलपुर : नक्सली इलाकों में काम नहीं करना चाहते ठेकेदार
जगदलपुर : बस्तर के नक्सल प्रभावित भीतरी क्षेत्रों में विकास का कार्य करने के लिए अब ठेकेदारों की रूचि कम हो गई है और इस संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार बिना वाहन के कार्य संपन्न नहीं होता और नक्सलियों के निशाने पर वाहन ही होते हैं। इन वाहनों के नुकसान होने पर वाहन मालिकों को मिलने वाली क्षति-पूर्ति की राशि इतनी कम होती है कि उनको होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती है।
इसलिए आज के समय में ठेकेदार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कार्य करने के लिए आगे नहीं आ पा रहे हैं और विकास कार्य इससे बाधित हो रहे हैं।उल्लेखनीय है कि बीते दो वर्ष में नक्सलियों ने ट्रकों, बसों सहित अन्य वाहनों को आग के हवाले कर विकास कार्यों को निशाना बनाने के साथ आतंक भी फैलाने की कोशिश की है।
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जानकारी के अनुसार अभी तक बीते दो वर्षों में नक्सलियों ने 300 से अधिक वाहनों को फूंक दिया है। इस संबंध में जानकारी देते हुए कुछ ठेकेदारों ने बताया कि बीमा कंपनी से मिलने वाली क्षति-पूर्ति राशि और शासन से मिलने वाली मुआवजा राशि प्राप्त करने के बाद भी उनके पास नुकसान के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हो पाता है। इससे वे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर कार्य करने में हिचकिचा रहे हैं। सडक़ निर्माण की गति को नक्सली अपने लिए खतरनाक मानते है। इसलिए सडक़ के कार्यो में लगी वाहने ज्यादा निशानों पर रहती हैं।
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