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कुम्हार अपने पुरखों के हुनर और परम्परागत व्यवसाय को सहेज रहे हैं

रायपुर, राज्य के कुंभकारों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने की पहल छत्तीसगढ़ माटीकला बोर्ड ने की है। बोर्ड द्वारा संचालित कुंभकार टेराकोटा योजना, ग्लेजिंग यूनिट की स्थापना, कुंभकारों का पंजीयन, माटीशिल्पिओं को प्रशिक्षण और डिजाईन विकास योजना, माटीशिल्पिओं को हस्तचलित रिक्शा ठेला प्रदाय और माटीशिल्पिओं को ‘अध्ययन यात्रा योजना‘ जैसी संचालित कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से कुंभकारों को लाभान्वित किया जा रहा है।

यही वजह है कि आज कुम्हार पूरे उत्साह से अपने परम्परागत व्यवसाय से जुड़कर बेहतर जीवन की ओर अग्रसर होने लगे हैं। उनके इस काम में परिवार के अन्य सदस्य भी बराबर की भागीदारी निभा रहे हैं। 

उल्लेखनीय है कि राजधानी के रायपुरा में 200 से अधिक कुम्हार परिवार अपने परंपरागत व्यवसाय से जुड़कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। कुम्हार समाज के सरपंच भरतलाल चक्रधारी और कुम्हार दिनेश कुमार चक्रधारी ने बताया कि पूरा परिवार पुश्तैनी काम से जुड़ा हुआ है। परिवार के बच्चे भी अपने माता-पिता से टेराकोटा शिल्प का गुर सीख रहे हैं।

विद्युत चॉक से जुड़ा कार्य परिवार के पुरुष करते हैं और महिलाएं हाथों से बनाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के सजावटी सामान और आकर्षक मिट्टी के सामग्री को तैयार करती हैं। उन्होंने बताया कि माटीकला बोर्ड से मिले विद्युत चॉक से जहां कार्यों में तेजी आई है, वहीं कम मेहनत के साथ मिट्टी के बर्तनों और अन्य सामग्री के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है।

मिट्टी के बर्तनों को तैयार कर रहे कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी से तैयार बर्तन प्रदूषण मुक्त होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है, क्योंकि इसे तैयार करने में किसी भी रसायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं होता है। मिट्टी के बर्तनों को तेज आंच में पकाने के बाद उपयोग में लाये गए कलर का प्रभाव भी खत्म हो जाता है।

मिट्टी के बर्तनों को साफ करने में जहां आसानी होती है, वहीं धातुओं के बर्तनों की सफाई पूर्ण रूप से नहीं हो पाती है। साथ ही साथ उपयोग के बाद फेंकने पर दोबारा मिट्टी में मिल जाती है इसलिए इसे प्रदूषण मुक्त मिट्टी बर्तन माना जाता है।

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