नई दिल्ली : इस साल बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की जयंती कई मायनों में खास है। बाबा साहब अब सभी दलों के सबसे बड़े राजनीतिक ब्रैंड बन गए हैं। अगले साल होने वाले आम चुनाव और कर्नाटक विधानसभा चुनाव को देखते हुए सभी दल दलितों के मसीहा आंबेडकर की शनिवार को मनाई जा रही 127वीं जयंती के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहती है।
चुनाव में दलित वोट बैंक पर अपना दावा मजबूत करने के लिए सभी दल आंबेडकर जयंती के जरिए खुद को दलितों का मसीहा बताने में लगे हैं। एससी-एसटी ऐक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भारत बंद में एससी-एसटी संगठनों ने जिस तरह विरोध-प्रदर्शन किया उसके बाद से सभी पार्टियां इस आबादी को अपनी तरफ लुभाने के लिए लगी हुई है। आम चुनावों में अब एक साल का वक्त ही बचा हुआ है और कोई भी दल दलितों को लुभाने का मौका नहीं छोडऩा चाहती है।
यूपी में राजनीतिक दलों में मची होड़
यूपी में इस बार सभी राजनीतिक दलों में आंबेडकर जयंती मनाने की होड़ मची हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण यूपी में बदला राजनीतिक परिदृश्य है। कभी दलितों का चैंपियन रही कांग्रेस भी खुद को फिर से एससी-एसटी के हितैषी पार्टी साबित करने के लिए जोर लगा रही है। लोकसभा चुनाव अगले साल हैं। अब चुनावी साल और माहौल में बाबा साहब को अपना राजनीतिक ब्रैंड बनाकर वोटरों के बीच ले जाने की होड़ सभी दलों में है और इसकी शुरुआत आंबेडकर जयंती से हो रही है।
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