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देश की सबसे बड़ी समस्या है लोग क्या कहेंगे: श्रद्धा

श्रद्धा कपूर का सितारा इन दिनों बुलंदियों पर है। उनकी हालिया रिलीज स्त्री ने बॉक्स ऑफिस पर पैसों की बारिश कर उन्हें खूब वाह-वाही दिलवाई। इन दिनों वह चर्चा में हैं अपनी जल्द रिलीज होनेवाली बत्ती गुल मीटर चालू से। उनसे एक खास बातचीत:

आपकी स्त्री बॉक्स ऑफिस पर काफी धूम मचाई

मैं इन चीजों में इतना भरोसा नहीं करती पर मेरे हिसाब से कोई एनर्जी जरूर हमारे आस-पास होती है। मुझे बचपन में भूत-प्रेत नहीं बल्कि अडवेंचर का बेहद शौक था। बच्चों की कल्पनाशक्ति काफी अडवेंचर्स होती है। मैंने बचपन में अपना क्लब खोल लिया था। मेरी बिल्डिंग के कई दोस्त मेरे क्लब का हिस्सा थे और मैं उस क्लब की प्रेजिड़ेंट हुआ करती थी। हम उस समय मैं अपने मन से अडवेंचर्स कहानियां बनाकर उन्हें खुद सुलझाया करती थी।

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जैसे हर रिश्ते में बदलाव आता है, ठीक उसी तरह हमारे संबंधों में भी काफी बदलाव आया है। मैं पापा की हर राय को गंभीरता से लेती हूं, चाहे वह फिल्म के लिए हो या जीवन के लिए, क्योंकि मुझे यकीन है कि वह मेरे पिता हैं, तो मेरा अच्छा ही सोचेंगे। वह मुझे हर चीज के लिए प्रोत्साहित करते हैं। पापा मुझे हमेशा यही कहते है कि आपको जीवन में जो करना है, करो बस खुश रहो। पापा ने हमेशा मेरी हर फिल्म की तारीफ की है, मगर जब भी मैं घर थकहार कर आती हूं, तो पापा जोर से गले लगा कर कहते हैं, मेरा बच्चा थक गया, जाओ सो जाओ। पापा की झप्पी मुझमें पूरी एनर्जी भर देती है।

आपकी फिल्म हैदर हो या स्त्री या फिर बत्ती गुल मीटर चालू

ऐसी कई समस्याएं हैं, जैसे जेंडर इक्वेलिटी, औरतों की सुरक्षा और साथ ही उनके सपनों को पूरा करना। इसके अलावा देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग क्या कहेंगे? आम तौर पर रात में लडक़ों को घर से बाहर जाने दिया जाता है, मगर लड़कियों को रोका-टोका जाता है। मेरे कई दोस्त हैं, जिनके जीवन में जेंडर इक्वेलिटी के कारण कई समस्याएं रही हैं। मैं खुद को फेमिनिस्ट मानने के बजाय ह्यूमेनिस्ट कहलाना पसंद करती हूं। मैं स्त्री और पुरुष दोनों को समान मानती हूं। जेंडर इक्वेलिटी पर फिल्म करने का मौका मिला, तो मैं जरूर करना चाहूंगी।
आपकी फिल्म बत्ती गुल मीटर चालू इलेक्ट्रिसिटी की समस्या पर आधारित है, आपको जीवन में बिजली की समस्या का सामना करना पड़ा है?

Shraddha Kapoor

बचपन में काफी बार लाइट चली जाती थी। उस वक्त हम खूब मस्ती-धमाल किया करते थे, मगर जब जरा समझदार हुई, तो बिजली का महत्व समझ में आने लगा। जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हुई, तो पापा से कह दिया था कि मेरी पॉकेटमनी बंद कर दो। मैं जब कमाने लगी, तो मैंने ऐलान कर दिया कि इतने बड़े बंगले के लाइट बिल में मेरा भी योगदान रहेगा। ये कॉन्ट्रिब्यूशन मैंने पापा से काफी लड़-झगड़ कर लिया है। अब जब मैं बिजली का बिल भर रही हूं, तो मुझे बिजली की अहमियत पता चलती है। यह भी अंदाजा हुआ कि बिजली कितनी महंगी हो गई है और इस वजह से हमें बिजली कहां और कैसे बचानी चाहिए। अब मैं इस बात का ध्यान रखती हूं। मेरे पापा हमेशा मुझे याद दिलाते हैं कि स्विच बंद करने चाहिए। मैं हमेशा उनकी बातों को ध्यान में रख कर फिजूल चल रही बिजली को बंद कर देती हूं। मैं इलेक्ट्रिसिटी बरबाद नहीं करती।

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शाहिद के साथ बतौर साथी कलाकर काम करते हुए आपका रिश्ता कितना संवरा? आप उनके साथ इससे पहले हैदर में काम कर चुकी हैं।
सेट पर अगर हम पहले से ही किसी को जानते हैं, तो एक अच्छा कम्फर्ट लेवल बन जाता है। हमने साथ में हैदर भी की है और हम एक -दूसरे को जानते भी हैं। मैं उनको अपना दोस्त भी मानती हूं। फिल्म की कहानी को लेकर हम दोनों में काफी उत्सुकता थी। फिल्म की कहानी काफी हट कर है और एक मुद्दे से जुड़ी हुई है। फिल्म में हमारा किरदार भी काफी अलग है। फिल्म के सीन भी काफी मजेदार हैं। शाहिद साथ काम करके काफी मजा आया।

उत्तरांचल में काम करने का अनुभव कैसा रहा?

उत्तरांचल आकर ऐसा लगा कि यहां से वापस लौटूं ही नहीं। उस जगह से तो मुझे प्यार हो गया। मुझे काफी सुकून भी मिला, वहां शूटिंग करके। उत्तरांचल के लोग बहुत ही सादा दिल और ईमानदार होते हैं। उनके बीच शूटिंग करना काफी सुखद रहा। उत्तरांचल की पहाडिय़ों में रहना और शुद्ध वातावरण में जीने का अपना मजा था। शूटिंग के दौरान हम ट्रैफिक और शोरगुल से दूर थे। उस जगह से तो मुझे प्यार हो गया। वहां लोग उत्सुकता के साथ लोग शूटिंग देखने आते थे। मुझे उनके मुस्कुराते चेहरे देखकर अच्छा लगता था।

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हमारे फिल्म के लेखक सिड और गरिमा ने बात कर गहरी रिसर्च की कि का फिल्म की कहानी में किस ढंग से डायलॉग को बोले जाने चाहिए। लेखक और डायरेक्टर मुझे समझाया करते थे कि उनकी भाषा को कैसे बोला जाना चाहिए। मुझे तो उनकी भाषा से प्यार हो गया, क्योंकि उनके बात करने बात करने ढंग बेहद प्यारा होता है। मैंने उनके लहजे में बात करने की कोशिश की है। सेट पर मैंने और शाहिद ने वहां की बोली का गहरा अभ्यास किया। वहां पर मैंने एक नया शब्द लाटा (पागल) सीखा। उस शब्द को मैंने फिल्म में कई बार इस्तेमाल किया है।
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आपकी आने वाली सभी फिल्मों के विषय काफी अलग और दिलचस्प हैं। मैं अलग तरह की फिल्मों में काम करना चाहती हूं। साइना नेहवाल एक बड़ी यूथ आइकॉन हैं और मेरे लिए काफी बड़ी बात है कि मैं उनके जीवन पर आधारित फिल्म कर रही हूं। फिल्म के लिए काफी तैयारी कर रही हूं और बैडमिंटन की भी जमकर प्रैक्टिस की है मैंने। ये कोई आसान खेल नहीं है। इस फिल्म की कहानी यही है कि किस तरह उन्होंने अपने सपनों को साकार किया है। साहो मेरी पहली बहुभाषीय फिल्म है। हिंदी और तेलगु दोनों भाषा पर काम कर रही हूं। फिल्म में शूटिंग के दौरान काफी मजा आया।

https://www.youtube.com/watch?v=QWvJfma-u6Y

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