
रायपुर। तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीमा पर…6 दिनों से एक खौफनाक जंग चल रही है… कररेगुट्टा की डरावनी पहाड़ियों में जहां जमीन के ऊपर घना जंगल है और जमीन के नीचे अंधेरे में छिपे हैं मौत के कई दरवाजे।
करीब 10,000 जवानों का सबसे ये सबसे बड़ा ऑपरेशन है, यहां दामोदर, हिड़मा, सुजाता और पापाराव जैसे खूंखार माओवादी नेताओं के मौजूद होने की बात कही जा रही है, सेंटरल कमेटी और मिलिट्री विंग के खतरनाक चेहरों के खिलाफ ये निर्णायक लड़ाई हो सकती है ।
इधर भीषण गर्मी से 40 से ज्यादा जवान डिहाइड्रेशन का शिकार हो गए…फिर भी पीछे हटने का सवाल ही नहीं!” 145 किलोमीटर की चौड़ी पहाड़ी, जहां 30% तेलंगाना… और 70% छत्तीसगढ़ का इलाका है…और हर चट्टान के नीचे छिपी है एक नई चुनौती।”
” यहां ये काली घुप्प अंधेरी घुफा भी है, जो पहली बार जवानों ने उजागर की है, ये एक रहस्यमयी गुफा है, जिसमें कुछ दिन पहले ही कई माओवादी छिपे थे…इसके अंदर के दृश्य ने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए! ताजा सबूत थे, अधजली लकड़ियां… राशन के बोरों के निशान…ये सबूत बता रहे थे कि कुछ ही दिन पहले, सैकड़ों माओवादी यहीं छिपे थे।
“गुफाओं का जाल…घने जंगल…ऊंची-खड़ी चट्टानें…और हर कदम पर घात लगाए मौत।”
“माओवादी जानते हैं…ये जंग आखिरी हो सकती है! इसलिए वे छुपे हैं… गुफाओं के गहरे अंधेरे में। इंतजार कर रहे हैं… जवानों के थकने का… ऑपरेशन के टूटने का।”
“लेकिन जवान भी डटे हैं…हर गुफा, हर सुरंग, हर चट्टान के पीछे छुपे दुश्मनों को बाहर निकालने के लिए। कररेगुट्टा की जंग… अब अपने सबसे खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है!”
“ये सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं…ये देश के सबसे बड़े दुश्मनों के खिलाफ निर्णायक हमला है।
कररेगुट्टा का फैसला अब बस कुछ कदम दूर है…अब या तो माओवादी बचेंगे… या उनकी कहानियां। जो देश की अगली पीढ़ी को सुनाई जाएंगी ।