स्थानीय भाषा बोले बिना बैंकिंग अधूरी: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी बैंकों को स्पष्ट संदेश दिया है — ग्राहकों से जुड़ाव बढ़ाना है तो स्थानीय भाषा बोलना ज़रूरी है।
उन्होंने कहा कि हर शाखा में तैनात कर्मचारी को अपने क्षेत्र की भाषा का ज्ञान होना चाहिए ताकि ग्राहक के साथ सीधा और आत्मीय संवाद हो सके।
सीतारमण ने कहा,
“अगर टॉप मैनेजमेंट स्थानीय भाषा नहीं बोलता, तो कम से कम शाखा अधिकारी तो बोल सके। मैं चाहूंगी कि भाषा दक्षता को भी कर्मचारियों के प्रदर्शन मूल्यांकन में शामिल किया जाए।”
भर्ती नीति में बदलाव की ज़रूरत
वित्त मंत्री ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र की भर्ती और मानव संसाधन नीतियों में सुधार जरूरी है, ताकि ऐसे लोगों को नौकरी मिले जो स्थानीय भाषा और संस्कृति को समझते हों।
उन्होंने माना कि यह एक बड़ी चुनौती है कि कई शाखाओं में मातृभाषा बोलने वाले कर्मचारियों की कमी है, जो ग्राहकों से जुड़ाव में बाधा बनती है।
ग्राहक संबंध कमजोर, भरोसा कमज़ोर
सीतारमण ने चिंता जताई कि अब बैंक ग्राहकों को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते, जिससे उनकी निर्भरता क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनियों पर बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि जब बैंक अपने ग्राहकों से दूर हो जाते हैं, तो योग्य लोगों को भी ऋण मिलने में दिक्कत होती है।
तकनीक और मानवीय स्पर्श का संतुलन जरूरी
वित्त मंत्री ने कहा कि आधुनिक तकनीक जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है मानवीय संपर्क और संवेदनशीलता।
उन्होंने याद दिलाया कि पुराने निजी बैंक स्थानीय ग्राहकों के साथ रिश्ते बनाकर ही सफल हुए थे।
साहूकारों से बचें, बैंकों पर भरोसा बढ़ाएं
सीतारमण ने बताया कि आज भी कई लोग साहूकारों से ऋण लेने को मजबूर हैं।
उन्होंने कहा कि बैंक अपने ग्राहकों के प्रति संवेदनशील और सहयोगी रवैया अपनाएं।
“आप ग्राहकों को जीवनभर दस्तावेज़ों का बोझ नहीं दे सकते। अगर छोटी-छोटी बातों को सुधार लिया जाए, तो बैंक देश के सबसे भरोसेमंद संस्थान बन सकते हैं।”
स्थानीय भाषा, मानवीय जुड़ाव और ग्राहकों की समझ —
इन्हीं तीन स्तंभों पर टिकी है भविष्य की सफल बैंकिंग प्रणाली।




