जग्गी हत्याकांड के बाद शुरू हुआ ‘अजीत जोगी का बुरा वक्त’

अबतक हमने आपको अजीत जोगी के कलेक्टर बनने से लेकर राजनेता और फिर मुख्यमंत्री बनने तक के सफर के बारे में बताया, अगर आप इन्हें पढ़ना चाहते हैं तो हमारी पिछली खबरें पढ़ सकते हैं, आज हम बात करेंगे अजीत जोगी के उन विवादों की जिनके चलते, जोगी की राजनितक जमीन ऐसी खिसकी, कि दोबारा वापसी करने के लिए वे अब भी ऐढ़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं ।
सीएम बनने के बाद कहा – ‘हां मैं हूं सपनों का सौदागर‘
नवंबर 2000 में अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन किसे पता था कि वह अजीत जोगी के राजनीतिक पतन की शुरुआत भी है. शायद वे खुद भी ये नहीं जानते थे.
ऐसी किसी कल्पना की ज़रूरत भी नहीं थी क्योंकि तब तक अजीत जोगी प्रशासनिक अधिकारी और फिर राजनीतिज्ञ के रूप में एक लंबी पारी खेल चुके थे. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने कहा था, “हां, मैं सपनों का सौदागर हूं. मैं सपने बेचता हूं.”
हालांकि इस बात में कोई शक नहीं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने योजनाबद्ध तरीक़े से छत्तीसगढ़ में विकास कार्यों की शुरुआत की. लेकिन वे अपना सपना लोगों से साझा नहीं कर सके, और धीरे-धीरे उन पर लोगों का अविश्वास बढ़ता गया, एक डर मन में समाने लगा,
उस वक्त इस डर की वजह उनके बेटे अमित जोगी भी रहे, जो फिलहाल विधायक भी हैं. जोगी के सीएम रहते अमित जोगी लोगों को ठीक उसी तरह लगते थे, जिस तरह एक ज़माने में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी लगते थे.
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जब अमित जोगी पर लगा हत्या का आरोप
अजीत जोगी के राजनीतिक करियर में, सबसे बड़ी गिरावट तब हुई, जब उनके सीएम रहते, उनके बेटे अमित जोगी पर, एनसीपी के प्रदेश कोषाध्यक्ष की हत्या का आरोप लगा, और शायद यही वो सबसे बड़ा कारण रहा, जब अजीत जोगी पर छत्तीसगढ़ की जनता का उठ गया, और चुनाव में जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया ।
कब और कैसे हुआ था जग्गी हत्याकांड ?
रायपुर में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष रामावतार जग्गी की चार जून 2003 को गोलीमार कर हत्या कर दी गई थी, उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री खुद अजीत जोगी थे,
जिसके बाद एक पुलिस और दूसरी मृतक के बेटे सतीष जग्गी की तरफ से प्राथमिकी दर्ज की गई थी, मृतक के बेटे की एफआईआर में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी और उनके बेटे अमीत जोगी को भी आरोपी बनाया गया था, लेकिन पुलिस उस वक्त कुछ ज्यादा कर नहीं सकी, लेकिन दिसंबर 2003 में हुए चुनावों में भाजपा सत्ता में आई गई, और रमन सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी, सीबीआई ने बाद में मामले की विवेचना कर मामले में अमित जोगी के साथ तीन पुलिस अधिकारियों समेत 31 लोगों को आरोपी बनाया ।
अजीत जोगी भी हुए गिरफ्तार
जग्गी हत्याकांड के इस मामले में रायपुर की ही एक अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ भी वारंट जारी किया था, जिसके बाद उन्हें राजनांदगांव के वीरेंद्रनगर से गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन उनके खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें जमानत भी मिल गई थी, वहीं अमित जोगी को इस हत्याकांड का मुख्य साजिशकर्ता बताया गया और वे करीब दस महीने तक जेल में रहे ।
अजीत और अमित जोगी दोषमुक्त
इस मामले में अजीत जोगी को बरी कर दिया गया था, जबकि रायपुर जिला न्यायालय के विशेष न्यायाधीश बीएल तिड़के ने, 31 मई 2007 को अपने फैसले में मुख्य षडयंत्रकर्ता के आरोप से अमित जोगी को भी बरी कर दिया, जबकि 23 आरोपियों को आजीवन कारावास और बाकि आरोपियों को पांच पांच वर्ष की सजा सुनाई थी, न्यायाधीश बीएल तिड़के जब ये फैसला सुना रहे थे, तब कोर्ट रूम खचाखच भरा हुआ था, और हर किसी की आंखें न्यायाधीश पर तो कान उनका फैसला सुनने के लिए बेताब थे, यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि अमित जोगी का केस राम जेठमलानी ने लड़ा था, जो कभी भाजपा सरकार में मंत्री हुआ करते थे ।
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साल 2003 में कांग्रेस ने किया सस्पेंड
अजीत जोगी को शुरूआत से ही जोड़ तोड़ में माहिर नेता माना जाता है, यही वजह रही कि उन्होने छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनते ही भाजपा के 12 विधायकों को तोड़ लिया था, उस वक्त उनकी काफी बाह-वाही भी हुई, लेकिन अगली बार जब उन्होने फिर ऐसी ही कोशिश की तो वे एक कथित स्टिंग में फंस गए, जिसमें वे बकायदा सोनिया गांधा का ना लेते हुए सौदेबाजी करते पकड़े गए, जिसके बाद कांग्रेस से उन्हें पहली बार सस्पेंड किया गया, आगे हम आपको अजीत जोगी के जाति विवाद और उनके साथ हुए उस हादसे के बारे में बताएंगे, जिसने उनकी जिंदगी बदलकर रख दी, लेकिन शायद उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति ही है, जो आज भी वे छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं।
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