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विशाखापट्टनम : अब दुश्मन के न्यूक्लियर मिसाइलों को ट्रैक कर सकेगा भारत

विशाखापट्टनम : भारत ने दुश्मन की न्यूक्लियर मिसाइलों को ट्रैक करने के लिए एक बेहद सीक्रेट शिप को बनाने में सफलता हासिल की है। पीएम मोदी ने सत्ता में आने के बाद देश में न्यूक्लियर मिसाइल शील्ड बनाने के लिए मेक इन इंडिया के तहत इस शिप के निर्माण का आदेश दिया था। स्वदेश निर्मित इस अब तक के सबसे बड़े शिप के साथ ही भारत ने दुश्मन की बलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने की दिशा में एक और जरूरी क्षमता हासिल कर ली है।

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इस परियोजना के एक शीर्ष प्रभारी ने इस खबर की पुष्टि करते हुए बताया कि इस साल दिसंबर महीने तक इसे नैशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन को सौंप दिया जाएगा। इस समुद्री निगरानी शिप को फिलहाल वीसी11184 नाम दिया गया है। इस शिप का अभी परीक्षण चल रहा है। जल्द ही इंडियन नेवी और एनटीआरओ की संयुक्त टीम समुद्र में इस शिप का परीक्षण करेगी। देश में निगरानी के काम में एनटीआरओ को महारत हासिल है।

समुद्री निगरानी शिप को फिलहाल वीसी11184 नाम दिया गया है

हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड के एमडी एलवी सरत बाबू ने कहा, हमने बेसिन ट्रायल पूरा कर लिया है और इसे सौंपने से पहले कई और परीक्षण किए जाएंगे। हमें उम्मीद है कि इस साल दिसंबर तक यह शिप सौंप दिया जाएगा। यह निगरानी शिप बेहद खास है। इसमें गुंबद के आकार के तीन ऐंटेना और सेंसर लगे हैं। यह शिप 14 मेगवॉट बिजली पैदा करता है जिससे ट्रैकिंग रेडार को बिजली मिलती है।

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विशेषज्ञों की मानें तो भारत को इस शिप से कई फायदे होंगे। भारत न केवल दुश्मन की न्यूक्लियर मिसाइलों को ट्रैक कर सकेगा बल्कि अपने स्वदेश निर्मित मिसाइलों को भी परीक्षण के दौरान आसानी से ट्रैक कर सकेगा। इस शिप को बनाने में 725 करोड़ रुपये का खर्च आया है। इसे मेक इन इंडिया प्रॉजेक्ट के तहत बनाया गया है। इसका वजन करीब 15 हजार टन है जो स्वदेश निर्मित शिप में सबसे ज्यादा है।

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इस पूरी परियोजना को बेहद गोपनीय रखा गया था। आलम यह था कि जहां इस शिप का निर्माण हुआ, उसे ऊपर से पूरी तरह ढंक दिया गया था ताकि आकाश में मंडराते दुश्मन के उपग्रह इसे देख न सकें। अब बन जाने के बाद कुछ महीने पहले ही इस शिप को बाहर निकाला गया है। हालांकि अभी भी इसकी खूबियों के बारे में किसी को नहीं बताया गया है। हिंदुस्तान शिपयार्ड के एमडी सरत बाबू ने कहा, जून 2014 में इस शिप का निर्माण शुरू हुआ था और हमने इसे 5 साल से कम समय में पूरा कर लिया है। यह बेहद जटिल शिप है।

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