मुंबई : जनवरी-मार्च 2018 तिमाही में करीब 50,000 करोड़ डूबने का अनुमान

मुंबई : सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का घाटा (पीएसबी) जनवरी-मार्च 2018 तिमाही में 50,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा छूने जा रहा है। यह अपने आप में रेकॉर्ड और जनवरी-मार्च 2017 में हुए 19,000 करोड़ रुपये के घाटे के दोगुने से भी ज्यादा है। बैंकों को यह भारी-भरकम घाटा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की सख्ती की वजह से हुआ है। दरअसल, आरबीआई ने सभी लोन-रीस्ट्रीक्चरिंग स्कीम को खत्म कर दिया। इस वजह से सरकार पर पूर्वनिर्धारित रकम से ज्यादा पैसे बैंकों में डालने का दबाव बढ़ गया है।
बैंकों का घाटा (पीएसबी) जनवरी-मार्च 2018 तिमाही में 50,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा छूने जा रहा है
जिन 15 सरकारी बैंकों ने पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के परिणाम घोषित कर दिए हैं, उनमें इंडियन बैंक एवं विजया बैंक को छोडक़र सभी 13 नुकसान में रहे हैं। इन सभी 15 बैंकों की कंसॉलिडेटिड अर्निंग्स (समेकित आमदनी) में 44,241 करोड़ रुपये का घाटा सामने आया है। बाकी 6 बैंकों के रिजल्ट आने पर घाटे का यह आंकड़ा बढक़र 50,000 करोड़ रुपये से पार करने की आशंका है। अभी आईडीबीआई बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनाइटेड बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक आदि के रिजल्ट आने बाकी हैं। इनमें सिर्फ बैंक ऑफ बड़ौदा ने अक्टूबर-दिसंबर 2017 तिमाही में मुनाफा कमाया था।
इंडियन बैंक एवं विजया बैंक को छोडक़र सभी 13 नुकसान में रहे हैं
रेटिंग एजेंसी इक्रा के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट और फाइनैंशल सेक्टर रेटिंग्स के ग्रुप हेड कार्तिक श्रीनिवासन ने कहा, ‘रीकैपिटलाइजेशन के बावजूद रिजल्ट घोषित करनेवाले 15 में 5 बैंकों की टियर-1 कैपिटल पोजिशन 7त्न की न्यूनतम अनिवार्य सीमा के आसपास है।’ बैंकों को हुए घाटे की प्रमुख वजह बैड लोन के लिए प्रविजनिंग करना है। केयर के प्रमुख अर्थशास्त्री मदन सबणवीस के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018 की तीन तिमाहियों में कुल लोन में एनपीए का अनुपात 11-12 प्रतिशत पर स्थिर था जो चौथी तिमाही में बढक़र 13.41 प्रतिशत पर पहुंच गया।