
जगदलपुर : पिछले कई वर्षो से स्तर में कई पर्यावरणीय समस्याएं सामने आ रही हैं। इनमें भूजल का स्तर का घटने और बस्तर के वनों का क्षेत्रफल लगातार कम होने से आसन्न कई खतरे सामने दिखाई पड़ रहे हैं। पर्यावरणीय विशेषज्ञों ने इस संबंध में समय-समय पर अपनी आवाज उठाई है, लेकिन इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ है कि साल वनों के लिए प्रसिद्ध बस्तर में इस जंगल के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है।
बस्तर के वनों का क्षेत्रफल लगातार कम होने से आसन्न कई खतरे सामने दिखाई पड़ रहे हैं
उल्लेखनीय है कि फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में लगातार घटते वनक्षेत्र पर चिंता जताई गई है। सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक 2001 में जहां बस्तर में 8202 वर्ग किमी क्षेत्र वन अस्तित्व में था वहीं 2017 में यह क्षेत्रफल घटकर 4224 वर्ग किमी पर ही सिमट गया है।कुल मिलाकर इन 17 सालों में बस्तर से 3978 वर्ग किमी वन क्षेत्रफल कम हो गया है। इतनी बड़ी संख्या में वन कैसे कम हो गए इसका जिक्र भी फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में किया है।
फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में लगातार घटते वनक्षेत्र पर चिंता जताई गई है
रिपोर्ट के अनुसार वनों का रकबा कम होने का सबसे बड़ा कारण अतिक्रमण, अवैध कटाई, खनन, सिंचाई परियोजनाओं के लिए उपयोग आदि शामिल है। वहीं बस्तर में आबादी भी बढ़ रही है। जिसका प्रभाव बस्तर के विशिष्ट साल वनों के क्षेत्रफल के कम होने के रूप में सामने आ रहा है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में शहर से ही साल वन लगे हुए थे, किंतु अब यह स्थिति शहर सेे 8 से 10 किमी दूर तक जाने पर मिलती हैं।
बस्तर के विशिष्ट साल वनों के क्षेत्रफल के कम होने के रूप में सामने आ रहा है
इसका नतीजा यह हो गया है कि इन वनों पर जो दबाव पड़ा वह रिपोर्ट के अनुसार बीते 35 वर्षों में ढाई सौ से अधिक बस्तियों के रूप में सामने आ चुकी है। इससे समूचे बस्तर में भूजल स्तर कम होता जा रहा है। दक्षिण- पश्चिम बस्तर में भी यही स्थिति है और वर्ष दर वर्ष पीने के पानी के लिए ग्रीष्मकाल में बहुत कठिनाई होती है।